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________________ प्रतिमां मंडन सार. ॥ अथ प्रतिमाकी भक्तिका स्तवन || जिन मंदिर दरसण जाना जीया, जाना जीया सुख पानार्ज या. जिन मंदिर दरसण जानें ते, बोध बीजका पानाजीया. केशर चंदन और अरगजा, प्रभुजीकी अंगीयां रचाना जीया. चंपा मरुवो गुलाब केतकी, जिनजीके हार गुंथाना जिया. द्रौपदीये जिन प्रतिमा पूजी; सूत्र ज्ञाताजी मानो जीया. जिन प्रतिमा जिन सरखी जानो; सूत्र उवाई मानो जीया. रायणरुख समोसर्या प्रभुजी; पूर्व नवां वारा जीया. सेवक अरज करे करजोडी; भव भव ताप मीटावना जीया. ॥ इति संपूर्णं ॥ Jain Education International ( २१ ) ॥ जिन प्रतिमा विषये महात्मा के उद्वारो || जिनवर प्रतिमा जगमां जेह, भावे भवियण वंदो तेह, जिम भवनो हुयें छेह । नामादिक निक्षेपा भेय, आराधनाए सवि आराधेय, नहीं ए कोई हेय । वाचक विष्णु कुण वाच्य कहेय, थाप्या विणु किम सो समरेय, द्रव्य विना न जाणेय । भान बिना किम For Personal & Private Use Only जि० जि० ए टेंक. जि० ॥ १ ॥ जि० ॥ २ ॥ जि० ॥ ३ ॥ जि० ॥ ४ ॥ जि० ॥ ५ ॥ जि० ॥ ६ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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