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________________ आणाए धम्मो - आज्ञा में धर्म २१००० वर्ष तक इस शासन में होने वाले साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका के कंधों पर भगवंत ने इस शासन की धुरा प्रस्थापित कर कहा कि, जंगत के हित के लिए यह शासन मैंने स्थापित किया है, उसी आशय से तुम इसे चलाना । आयुष्य कर्म पूर्ण होने पर परमात्मा मोक्ष में चले जाते हैं; उसके पश्चात् यह शासन श्रमणपुंगवों से ही चलता है और जब तक श्रमणसंघ विद्यमान हो तब तक ही चलता है । इसलिए ही कहा है कि, 'समणप्पहाणो संघो' 'यह संघ श्रमणप्रधान है'। चारों प्रकार के संघ में श्रमण संघ मुख्य है, प्रधान है । श्रमणों में आचार्य मुख्य है । इसीलिए कहा है कि, 'सायरियो संघो' 'आचार्य सहित हो, वह संघ है ।' आचार्य या श्रमण के ऊपर भी जिनाज्ञा और जिनाज्ञा को दर्शानेवाले शास्त्र होते हैं । शास्त्र के आधार पर ही आचार्यादि श्रमण भगवंत स्वयं प्रवर्तित होते हैं और आश्रित श्रावक-श्राविका गण को प्रवर्तित करते हैं । इसलिए ही कहा है कि, 'आगमचक्खू साहू' 'साधु आगमरूपी आंखवाले होते हैं । 'धम्मो आणाए पडिबद्धो' धर्म आज्ञा के साथ बंधा हुआ है ।' यह मर्यादा हम सबको अच्छी तरह ख्याल में रहनी चाहिए । Jain Education International For Personal & Private Use Only M oibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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