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________________ मंदिरजी के कारोबारी ट्रस्टी हो सोसायटी के भी कारोबारो सदस्य हैं । अतः उन्होंने मंदिरजी के पैसों से सोसायटी के कोमन प्लॉट में फ्लोरींग एवं बाथरूम बनाए हैं । उस हेतु हुए खर्च की रु. ६०००० से ६५००० की रकम मंदिरजी से उठाई है । तो ऐसे मंदिरजी के पैसे सोसायटी के प्लॉट में लगाए जा सकते हैं क्या ? मंदिरजी ट्रस्ट एक्ट अनुसार रजिस्ट्रीकृत है । ऐसी बड़ी रकम चैरिटी कमिश्नर की स्वीकृति के बिना लगा दी है। सोसायटी के कोमन प्लॉट में यह कार्य होने से इसका दोष सोसायटी में रहनेवालों को लगेगा या ट्रस्टियों को ? इस तरह रकम के दुरुपयोग की जिम्मेदारी किसकी ? इस बारे में पूरी विगत के साथ “शंका और समाधान” विभाग में जवाब दे मुझे आभारी करें । समाधान-५७ : धर्मक्षेत्र के किसी भी खाते की रकम धर्मक्षेत्र को छोड़ अन्य किसी भी क्षेत्र में नहीं लगा सकते । उसमें भी जो कार्य साधारण में से ही किए जा सकते हैं, उन कार्यों में देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, साधु-साध्वी द्रव्य, अनुकंपा या जीवदया द्रव्य भी नहीं लगाया जा सकता। धर्मेतर कार्यो में ऊपर के द्रव्य की भाँति श्रावक-श्राविका क्षेत्र का द्रव्य भी नहीं लगा सकते । जो कार्य सर्वसाधारण (शुभ खाता) में से किए जा सकें ऐसे होते हैं, उन कार्यों हेतु साधारण द्रव्य भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता । सात क्षेत्रों हेतु नियम ऐसे हैं कि - श्रावक-श्राविका क्षेत्र का द्रव्य संयोगविशेष में जरूर पड़ने पर साधु-साध्वी क्षेत्र में, जैनागम क्षेत्र में एवं जिनमंदिर-जिनमूर्ति क्षेत्र में इस्तेमाल कर सकते हैं, परंतु जीवदया, अनुकंपा या धर्मेतर कार्यों में इस्तेमाल नहीं कर सकते । तथा जिनमंदिर-जिनमूर्ति खाते का (देवद्रव्य) द्रव्य हो तो वह जिनमंदिरजिनमूर्ति बिना अन्य किसी भी कार्य में इस्तेमाल नहीं कर सकते । अतःएव मंदिरजी के नजदीक सोसायटी के कोमन प्लॉट, जिसे मंदिर के साथ कोई लेना-देना नहीं है, उसके फ्लोरींग में या संडास-बाथरूम बंधवाने जैसे कार्यों में देवद्रव्य या धर्मक्षेत्र के किसी भी खातों की रकम नहीं लगा सकते। ___ इस तरह धर्मक्षेत्र की रकम ऐसे कार्यों में इस्तेमाल करनेवाले ट्रस्टी अवश्य दोष के भागी बनते हैं एवं इस सुविधा का उपयोग करनेवाले सोसायटी के निवासी या | ९० धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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