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________________ ५४ १०. कुरुक्षेत्र - दमयन्तीचम्पू में तापी नदी का वर्णन करते हुए कवि ने उसे सूर्य की पुत्री, राजा संवरण की पत्नी और कुरु की माता यमुना कहा है । कुरु इसका पुत्र था । १८२ कर्षित भूमि का नाम कुरुक्षेत्र हो गया । १८३ यही वैदिक देवयजन क्षेत्र है । स्थाणीश्वर को ही कुरुक्षेत्र माना जाता है। १८४ कुरुद्वारा ११. गुर्जर — दमयन्तीचम्पू में बालशालवन को 'गुर्जरकूर्चामिवाखण्डित - प्रवालम्' कहा गया है। गुर्जर प्रदेश बड़ौदा, खेड़ा और जावरा जिले से राजपूताना की दक्षिण सीमा तक था । १८५ यहाँ के लोग बिना कटी हुई दाढ़ी रखते थे । १२. त्रिपुष्कर - दमनक मुनि का वर्णन करते हुए कवि ने त्रिपुष्कर का उल्लेख किया है। उनके शरीर पर यज्ञोपवीत के तन्तु ऐसे सुशोभित थे जैसे त्रिपुष्कर स्नान के समय शरीर में कमलतन्तु के सटे हुए कुण्डल हों । पुष्कर अजमेर के पास प्रसिद्ध तीर्थ है । यहाँ ज्येष्ठ, मध्यम और कनिष्ठ तीन ह्रद हैं। इसे तीर्थराज कहा जाता है । १३. नासिक्य - नारी - सौंदर्य वर्णन के प्रसंग में नासिका की प्रशंसा करते हुए नासिका (वर्तमान नासिक) स्थल की ओर संकेत है। यह महाराष्ट्र प्रदेश में है । १४. निषध - निषध देश और निषधापुरी का वर्णन दमयन्तीचम्पू में बड़े विस्तार से किया गया है। इसमें बड़े-बड़े भवन थे, क्रीड़ा सरोवर थे और विविध रंग - शालाएँ थीं । निषध को बर के उत्तर-पश्चिम में और मालवा के दक्षिण में माना जाता है। १५. पारसीक - पारस देश भारत के पश्चिम में है। तृतीय उच्छ्वास में त्रिविक्रम ने पारस से पालने के लिए कपोत पक्षी लाने का उल्लेख किया है 'पारसीकोपनीतपारावतपतत्त्रिपञ्जरसनाथे ।' ― १६. प्रभासतीर्थ - द्वारका के पास प्रभास प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। महाभारत में कहा गया है। कि प्रभास में स्नान करने से राजयक्ष्मा नष्ट हो जाता है । त्रिविक्रम ने श्लेष द्वारा प्रियंगुमंजरी के कन्या -जन्म को पृथ्वी द्वारा पुण्यक्षेत्र प्रभास को उत्पन्न करने से उपमित किया है। १७. भोजकट – कुण्डिननगर के पश्चिम में भार्गव आश्रम का वर्णन मिलता है । भार्गव को ‘भोजकटकूपजन्मा' कहा गया है। चण्डपाल (टीका में) भोजकटकूप स्थान का नाम मानता है। यह स्थान विदर्भ में ही था । विष्णुपुराण और महाभारत में भी इसी स्थान का उल्लेख मिलता है। १८. मगध - स्वयंवर में मगध का राजा भी आया था । इसी प्रसंग में इस प्रदेश का उल्लेख है । मगध प्राचीन भारत का प्रसिद्ध राज्य था जिसकी राजधानी पुष्पपुर में थी । १९. मध्यदेश– नारी-सौंदर्य का वर्णन करते समय कटि का उल्लेख करते हुए श्लेष से मध्यप्रदेश की ओर संकेत किया गया है। सरस्वती के विनशन क्षेत्र से प्रयाग तक और हिमाचल से विन्ध्याचल तक का भूभाग मध्यदेश है। १८ १८६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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