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________________ ( ११३ ) ऐसा नहीं है पोतजका अर्थ यह है कि वखकी तरह साफप नसे जन्म पावे. न तो जिसके चारों ओर जरायु होवे, और न जो अण्ड से जन्म पावे, वैसे हाथी के बच्चे आदिकी तरह जन्म पाने: वालेको पोतज कहा जाता है. पोतशब्दका अर्थ बच्चा कहा जाय तो क्या जरायुसे होनेवाले और अण्डसे होनेवाले छोटे होवें वे बच्चे नहीं कहे जायेंगें ? जब वे भी पोत याने बच्चे कहे जायँ तो फिर पोतशब्द कहना ही व्यर्थ है, और तीसरी तरहका जन्म तो रह ही जायगा, इससे लाघव के हिसाब से और यथास्थितपदार्थ के निरूपण में 'जराखण्डपोतजानां ऐसा ही पाठ कहना लाजिम है । 1 ( १३ ) सूत्र ३४ में दिगम्बर 'देवनारकाणामुपपादः ऐसा सूत्र मानते हैं, और श्वेताम्बर 'नारकदेवानामुपप्रातः' ऐसा सूत्र मानते हैं. इसमें नारकोंको प्रथम कहनेका कारण प्रथमः अध्याय के 'भवप्रत्ययो ०? इस सूत्र की तरह और उपवाद व उपपात के लिये इसी ही अध्याय के ३१ वें संमूर्च्छनगर्भोपपादा सूत्र की तरहसे समझना । ( १४ ) सूत्र ३७ में दिगम्बर लोग 'परं परं सूक्ष्मं' ऐसा सूत्र मानते हैं, और श्वेताम्बर 'तेषां परं परं सूक्ष्मं' ऐसा सूत्र मानते हैं. दोनोंके भी मत से इस सूत्र के पेश्तर 'औदारिकः शरीराणि'' यह सूत्र है, अब इधर दोनोंके ही हिसाब से निर्धारण:को दिखाने के लिषे विभक्ति तो चाहियेगी । शाखकार महाराज · For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004064
Book TitleTattvartha Kartutatnmat Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagranandsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1936
Total Pages180
LanguageSanskrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size15 MB
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