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________________ समय देशना - हिन्दी नाड़ी साधन है, साध्य नहीं है । साधन से साध्य का जो ज्ञान है, उसका नाम अनुमान है । वह अनुमान भी प्रमाण है । वह कौन-से ज्ञान का विषय है ? मति: स्मृति: संज्ञाचिंताभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् ॥ १/१३ त.सू.॥ मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता, अभिनिबोध इन नामों से जो अनुमान है, वह कौन-सा है ? जो पूर्व संस्कार का निबंधन है, वह स्मृति है। स्मृति-ज्ञान भविष्य का नहीं होता है, भूत का होता है । जातिस्मरण भूतकाल के होते हैं। जो कहता है कि मुझे जातिस्मरण हुआ है कि मैं भविष्य में ऐसा बनूँगा, वह सफेद झूठ कहता है। आगम कह रहा है कि जो जाना था, उसकी स्मृति होगी। भविष्य की निबंधक अनभ्यस्त दशा की स्मृति नहीं होती है, पृच्छना होती है। इसलिए हमारा जो स्मृतिज्ञान है, वह भूतकाल का होता है, भविष्य का नहीं होता है । इसलिए कोई यह कहे कि मुझे जातिस्मरण हुआ है, कि मैं भविष्य में ऐसा होऊँगा हे ज्ञानी ! 'होऊँगा' जो विषय है, वह अवधिज्ञान का विषय है, जातिस्मरण का नहीं है। ज्योतिष का या, निमित्तशास्त्र का विषय हो सकता है, परन्तु यह स्मृति का विषय नहीं है। जो जातिस्मरण होता है, वह मृत्यु के पहले का होता है, पूर्व पर्याय का होता है, भविष्य की पर्याय का नहीं होता है। आप इतने ज्ञानी हो, फिर भी कोई कुछ भी बोलकर चला जाये, उसकी हाँ में हाँ भर देते हो। इसलिए कहता हूँ कि बिना तर्कशास्त्र के व्यवहारिक ज्ञान भी व्यवस्थित नहीं होता है। ज्यादा मत पढ़ो न्यायशास्त्र । बस ,"परीक्षामुख'' का अध्ययन कर लो। इसका अध्ययन कर लिया तो जैनन्याय में बहुतकुछ पढ़ लिया। इसमें सम्पूर्ण शंकाओं का समाधान है। इसमें प्रमाणों का और, प्रमाणाभास का कथन है। और जो विद्वान इस ग्रन्थ का अध्ययन नहीं कर पाता, वह सिद्धांत और अध्यात्म को व्यवस्थित नहीं बैठा पाता है। न्याय के पढ़े बिना अध्यात्म की गहराई को समझना बड़ा कठिन है । आप आत्मा व पुद्गल को तो बोल सकते हो, पर गहराई में नहीं बता सकते हो। परीक्षामुख सूत्र' स्मृति के लिए कह रहा है - संस्कारोबोध निबंधना तदित्याकारा स्मृति: । ३/३परीक्षामुख ॥ जो हमने पूर्व में संस्कार डाल दिये थे, उन संस्कारों का बोध हो जाने का नाम 'स्मृति' है। जातिस्मरण के लिए 'कल्याणकारक' ग्रन्थ में लिखा है कि हर व्यक्ति को जातिस्मरण नहीं होता। जो मृत्यु के काल तक परिणामों से विशुद्ध रहते हैं और निर्मल अध्ययन में लीन रहते हैं, मंद कषाय व भद्र परिणाम से जिन जीवों का मरण होता है, ऐसे जीवों को पूर्व पर्याय का स्मरण रहता है। हेतु क्या है ? कोई विषय याद न आता हो तो उसे याद करने का प्रयास न करना । जो प्रयास करता है, उसे संक्लेशता बढ़ जाती है तनाव (टेंशन) हो जाता है। फिर क्या करना चाहिए? परिणामों को शान्त रखना चाहिए परिणाम शांत हो जायेंगे, आप हल्के हो जायेंगे, तो अपने आप याद आ जायेगा। परिणामों की मंदता से और कषाय की विशुद्धि से क्षयोपशम बढ़ता है । आगम अनुभव से बोल रहा हूँ। मुझे याद नहीं होता था, श्रेयांशगिरि में था तो सामायिक में टेंशन होता था। मैंने सोचा कि ऐसा ज्ञान किस काम का, जो सामायिक न करने दे? मैंने टेंशन छोड़ दिया। सामायिक जरूरी है, ज्ञान नहीं। सामायिक अच्छे से की, बाद में याद किया तो याद हो गया। ध्यान रखना, परीक्षा के पहले छुट्टियाँ दे देते हैं। कालेज/स्कूल में पढ़ाई बन्द कर देते हैं। क्यों? विश्राम करो। अधिक समय तक पढ़ोगे तो मशीन गर्म हो जायेगी। जो आप पढ़ चुके हो, उसे आने दो | चकरी होती है न, जिसमें किसान रस्सी बाँधते हैं, जैसे बच्चों को खेलनेवाला भौंरा होता है। उसे जमीन पर न गिरने दो तो वह उल्टा घूमना शुरू कर देगा। ज्ञानी ! आपने जो भरकर रखा था, उसे आने दो। शांति से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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