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________________ समय देशना - हिन्दी २८३ लेते हैं, और वह नींद आती है। थकान आती किसे है? संसारी को, कि मुक्त को ? संसारी को । आप भगवान् को मानते हो, हृदय से मानते हो, कि पिताजी के कहने से मानने लगे? सत्यार्थ बताइये । भगवान होते भी हैं, कि हम मानते ही हैं। मानते आये, इसलिए मानते हैं। फिर आप संसारी हो, कि मुक्त हो? आप संसारी हो तो, हे ज्ञानी ! कोई मुक्त नाम की वस्तु होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? होना चाहिए। तो उसी का नाम तो भगवान है। यानी भगवत्ता नाम की शक्ति है। जो भगवान है, वह अठारह दोषों से रहित है उसमें निद्रा भी एक दोष है । छुहतण्ह भीरूरोसो रागो मोहो चिंता जरा रुजामिच्चू । सेंद खेद मदो रइ विम्हियाणिद्दा जणुव्वेगो ॥ ६ ॥ णियमसारो ॥ के तो अठारह दोष क्यों कहे? यदि सहज होता है, तो दोष नहीं होता है। जो दोष होता है, वह सहज नहीं होता है। हमें जगत के लोगों से प्रयोजन नहीं है, कि आप समझेंगे कि नहीं समझेंगे। मुझे यह प्रयोजन है कि शुद्ध सत्य को एक बार कानों से सुन तो लो। जो वर्तमान नवयुवक, नवविद्वान, कोटि-कोटि ग्रन्थों को पढ़ने वाले कह बैठते हैं, शील का पालन क्यों नहीं करते हो, बोलते है, कि वेदकर्म की उदीरणा सहज है । हे ज्ञानी ! ऐसे व्यक्ति को कभी गणधर की गद्दी पर विराजमान कर मत देना। वह तो महावीर के सिद्धान्त को सम्पूर्ण नष्ट कर देगा। जब सहज है, भूख लगना सहज है, तो जैसे ही लगती है, वैसे ही खाना चाहिए न ? जब इच्छित नहीं मिलता, तब क्यों नहीं खाते हो ? सहज तो तुरन्त होता है, यह आपने रोक कैसे लिया ? कुछ लोग उपवास भी कर लेते हैं, वह कैसे कर लिया ? इसलिए ध्यान दो, मुनि बनना भी सहज नहीं है, भूख लगना सहज नहीं है । भूख लगना असातावेदनीय कर्म की उदीरणा है। उसकी उदीरणा के बिना भूख लगती नहीं । डर लगना भी सहज है न ? तो जहाँ आपको डर लगता है, वहाँ दूसरा निकलता है तो, उसे डर क्यों नहीं लगता? आपको भय है, सहज नहीं है । जितनी लोक में वृत्तियाँ दिख रही हैं संसारी जीवों में, ये सहज नहीं हैं। ये कर्मोपाधिक हैं। यदि आत्मा से कर्म निकल जायें, तो सिद्ध भगवान् भी जीव हैं, अरहंत भगवान भी जीव हैं । अरहंत भगवान कभी ग्रास नहीं खाते, यानी आहार नहीं लेते। सिद्ध भगवान कभी भोजन नहीं ते । यदि जीव का विभाव सहज हो जायेगा, तो जितने जगत में दोष / पाप हैं, वह सभी भगवन्तों में नजर आयेंगे, यदि सहज है तो । पुनः चलिए, पानी का उष्ण होना, सहज है न । सहज का अर्थ समझ में आता है क्या ? सहज यानी स्वभाव, नैसर्गिक सहज है । पानी का स्वभाव । उष्णता सहज है क्या ? अग्नि पर रखने के कारण हुआ है। यानी पानी का स्वभाव उष्ण नहीं है, वह अग्नि की उपाधि है, यदि क्रोध आना सहज है, तो आपको चौबीस घण्टे क्रोध ही करना चाहिए, जबकि क्रोध करते स्वयं थक जाते हो, और स्वयं ठण्डे हो जाते हो। क्रोध कषाय का उपशम भाव स्वयं होगा। क्षमा सहज है, क्रोध सहज नहीं है । जिन-जिन लोगों ने सहज शब्द का विपर्यास किया, वे असहज हो गये । विकारी भाव सहजभाव नहीं है, वह सोपाधिक भाव है। फिर छः द्रव्य सहज कैसे हैं ? हाँ, परम सत्य है । जीव किसी से उत्पन्न नहीं कराया गया, अजीव आदि द्रव्य किसी से उत्पन्न नहीं कराये गये । अपने आपमें सहज हैं। लोक सहज है, अलोक सहज है। इसलिए पारणामिक भाव सहज । हे जीव ! तेरा जीवत्व भाव सहज है। लेकिन अभी तू परम सहज में नहीं है । क्योंकि तू अभी संसारी है। परम पारणामिक भाव ही परम सहज-स्वभावी है। I लोग हँसते-हँसाते और कहते हैं कि सहज है। सहज नहीं है, तेरा प्रयोग है । प्रायोगिक जितने हैं, वे सहज नहीं हैं। मैंने कहा ठीक से बैठ जाओ और सहज का प्रयोग करो। सहज क्या है? जिसमें सहज Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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