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________________ समय देशना - हिन्दी २२६ आनंद झरता है। स्वाद कहाँ से निकलता है? जीभ से, कण्ठ से, दाँत से निकलता है, कि होता है ? ऐसे ही ज्ञान का आनंद होता है, श्रद्धान का भी आनंद होता है, चारित्र का भी आनंद होता है और यह आनंद तभी आता है, जब हम बाहरी क्रियाओं को गौण करके क्रिया करें। क्रिया की बात मत करो। क्रिया की बात क्रिया करने में विघ्न करती है। हाथ पकड़ो, आप श्रावक हो, गृहस्थी में ग्रसित हो । तो आप जिस पक्ष में ले जाना चाहो, ले जा सकते हो, हर प्रकार का वेदन आपके साथ है। आप जहाँ लगाना चाहो वहाँ लगा सकते हो। एक वीतरागी श्रमण साधना मौन को से करे, तो साधना का आनंद आता है और साधना का व्याख्यान करेगा, तो व्याख्यान का आनंद आयेगा, परन्तु साधना का आनंद नहीं आयेगा । क्रिया करो, पर कहो मत । कहने में आनंद भंग होता है । समझ में आया ? यही कारण है कि तीर्थंकर वर्द्धमान स्वामी ने बारह वर्ष तक मौन धारण किया। घर में बर्तनों में मिठाइयाँ रखी हों तो सभी बर्तन भिन्न-भिन्न स्थान पर स्थापित कर देना तब मिठाइयाँ सुरक्षित खुशबू देती रहेगी। पर वे ही बर्तन सटा दोगे, तो मिठाइयाँ तो रहेंगी, लेकिन खटपट होगी, | आवाज आयेगी न, बरतन का वर्तन भिन्न में कराइये । बरतन का वर्तन अभिन्न में मत कराइये । परिणामों का वर्णन स्वतंत्र होने दीजिए, तो शांति मिलेगी। परिणामों के बरतन में पर का वर्तन करा दिया, तो अशांति मिलेगी। कहने में आनंद नहीं है। ध्रुव सत्य है कि जो गोपनीय वस्तु होती है, उसे आप छुपकर ही ले जाते है घर में जो धन आपके है, जो गुप्त पैसा है , उसे आप पुत्र-पत्नी को भी नहीं बताते । भाइयों के साथ के पैसे में कितना आनंद आता है और जितना स्वतंत्र कमा के सुरक्षित किये हो, उसमें कितना आनंद आता है? अन्तर है। दो प्रकार की सम्पत्ति है आपके घर में। एक पिताजी की सम्पत्ति, जिसमें चारों भाइयों का हिस्सा है। दूसरी स्वतंत्र आपने कमाई है, उसमें मात्र आपका हिस्सा है, और किसी को मालूम नहीं है, गुप्त रखे है । यथार्थ बोलना, आनंद किसमें आता है ? स्वतंत्र में जो योगों के साथ आनंद आ रहा है , वह भाइयों के साथ रखा पैसा है। जो उपयोग की अनुभूति उपयोग में चल रही है, वह स्वतंत्र निज आत्मा की कमाई है। जो योगों के साथ परिणति चल रही है, भिन्न भोगों के साथ परिणति चल रही है, वह एकत्व-विभक्तभाव नहीं है। जो एकत्व विभक्तभाव है, वह परभावों से भिन्न भाव है। और हम सभी ने अनुभव किया है कि व्यवहारिक बातें इस सभा में जरा भी प्रारंभ हो जायें, तब विषय तो बढ़ता है, पर शांति इतनी नहीं होती। मैंने स्वयं कई बार अनुभव करके देखा है। विषय तो अनेक होते हैं, वे स्पष्ट होते हैं, यह सत्य है, लेकिन जो इस विषय का आनंद है, वह उसमें नहीं आता है। ये आप सब अनुभव कर रहे हैं। अभी-अभी मैं पूजा-पाठ का विषय छेड़ दूं तो कई प्रश्न आ जायेंगे, लेकिन शांति नहीं आयेगी। क्यों ? जो सरल विषय होते हैं, उसमें शब्द बहुत होते हैं, और जो गूढ विषय होते हैं, उनमें शब्द अल्प होते हैं, परन्तु सार बहुत होता है। इसलिए ध्यान दो, जो फल छिलके सहित है, उसमें वजन बहुत होता है, छिलके के पैसे भी देना पड़ते हैं। लेकिन आप मौसम के फल को छिलके सहित खा जाओ, क्योंकि उसके आपने पैसे दिये थे। पर प्रयोजनभूत मात्र जो रस था, तब भी पैसे आप छिलकों के भी देकर आये हो । एक ही फल था, उसमें दो स्वाद थे। छिलके के साथ खाओगे तो कड़वा लगेगा, और रस मीठा था। हे ज्ञानी ! एक ही आत्मा, उसमें तीन स्वाद हैं - (१) शुभोपयोग (२) शुद्धोपयोग (३) अशुद्धोपयोग। मौसमी का रस निकालते हो, तो रस थोड़ा-सा निकलता है, छिलके ज्यादा निकलते हैं। वैसे ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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