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________________ समय देशना - हिन्दी १०३ जिसकी दृष्टि वित्त (धन) पर चली गई, तो अंतराल ही अंतराल है। यही योग, उपयोग, संयोग की धारा है । योग अर्थात् हाथ जुड़े थे, स्थिर खड़ा था, योग सरल था। संयोग अर्थात् तीर्थंकर का पादमूल था। दो तो मिल गये, पर तीसरा मिलना कठिन था। निहारो ! योग सरल था, क्योंकि प्रभु के चरणों में हाथ जोड़े खड़ा था, संयोग अरहंत का था; पर उपयोग में क्या था, ये तो बता। योग सीधा मिल गया, संयोग अच्छा मिल गया पर, हे मुमुक्षु ! उपयोग में धारा आ गई कि मेरी भक्ति को कितने लोग देख रहे हैं। उपयोग कहाँ गया ? एक विद्वान् तत्त्व उपदेश कर रहा है। उसका वचनयोग अच्छा चल रहा है। जिनवाणी का संयोग है, सुननेवाले आनंद लूट रहे हैं। पर उस विद्वान् की दृष्टि में आ रहा है कि यदि अच्छी प्रभावना होगी, तो टीका अच्छा होगा । हे ज्ञानी ! तेरा तत्त्वज्ञान तेरे लिए कार्यकारी नहीं हुआ। योग भी अच्छा हो गया, संयोग भी अच्छा हो गया, पर उपयोग अच्छा नहीं है, तो संयोग क्या करेगा? यस्य मोक्षेऽपि नाकांक्षा, स मोक्षमधि गच्छति । इत्युक्तत्वाद्धितान्वेषी कांक्षां न क्वापि योजयेत ॥२१॥स्वरूप संबोधन।। हे ज्ञानी ! मोक्ष की इच्छा से भी मोक्ष नहीं मिलता, विश्वास रखना । जो मोक्ष की भी इच्छा नहीं रखता, वही मोक्ष को प्राप्त होता है। जब तक मोक्ष की इच्छा रखोगे, तब तक स्वर्ग ही जा पाओगे। जिस दिन मोक्ष की इच्छा समाप्त कर दी, उस दिन सिद्ध बन जाओगे। मोक्ष की इच्छा यानी मोक्ष के प्रति भक्ति, भक्ति यानी राग, राग यानी शुभोपयोग । शुभोपयोग स्वर्ग देगा, शुभोपयोग मोक्ष नहीं दिला पायेगा। इसलिए आपको वस्तुस्वरूप को समझना है । जैसी भूमिका है, वैसी करना; लेकिन स्वरूप को समझकर चलना । पूजन-भक्ति से स्वर्ग ही मिल पायेगा, मोक्ष नहीं मिलेगा । पूजन-भक्ति का राग भी जिसका समाप्त हो जायेगा, ऐसा वीतरागी निर्ग्रन्थ तपोधन ही मोक्ष को प्राप्त कर पायेगा। जैनदर्शन बहुत गहरा है। जिसे आपने धर्म माना है, यह छिलके के पास है। दिख रहा है कि जिस पर छिलका है. उसके अन्दर कछ है। क्या करूँ? गठलियाँ चढाना जानते हैं न । सत्यार्थ पूछो तो जितने ज्ञानीजीव बैठे हैं, वे सब भगवान् को गुठलियाँ चढ़ाते हैं। फल चढ़ाते हो नहीं, गुठलियाँ चढ़ाते हो। बादाम का फल कब चढ़ाया आपने ? ये बादाम का फल नहीं, शुद्ध गुठली है। वस्तुस्वरूप यहाँ समझना है। आप क्या चढ़ाते हो, वहाँ नहीं जाना है। आपके बच्चे नीम और बेर के झाड़ों को पत्थर मारते होंगे, तो वे नीम की निबोरी और बेर खाते होंगे । पर कर्नाटक के बच्चे काजू-बादाम के झाड़ पर पत्थर मारते हैं और काजूबादाम खाते हैं। बात कुछ और है, समसयार समझना है। आप आम को चूस कर फेंक देते हो। जिसके ऊ पर आम जैसा फल है, उस गुठली के अन्दर बादाम है, वह भी मीठी है। अहो बालक ! तूने समझ लिया था कि जो बादाम पर फल है, दल है, वही शक्तिमान है; पर तुझे मालूम नहीं था। छिलके को उतारकर दल को ही स्वाद मान लिया। पर उसके अन्दर एक कवच था, उसको तोड़ता तो सर्वशक्तिमान बादाम की गिरी थी। वस्त्र उतार लिए, पूजनपाठ का दल मिल गया, लोकपूजा बढ़ गई, पर मोह की गाँठ फूटी नहीं, शुद्धात्मा की गिरी मिले कैसे ? बादाम न देखी हो परन्तु आम तो आप सबने देखा है। आम के मौसम में आपने दल खाया और गुठली को फेंक दिया, परन्तु सार तो गुठली के अन्दर ही था । आगामी वृक्ष बनेगा तो उसी गुठली के अन्दर से निकलेगा और आम के खाने पर जो फोड़े होते हैं, वे ठीक होंगे तो गुठली के अन्दर जो गोई (बीज) निकलती है, उसी से होंगे । जो आपने भोगों के आम चूसे हैं, उन फोड़ों को ठीक करना है, तो गिरी को निकालना सीखो। जिसमें है, उसे तो फेंक देते हो। पर आम के दल को जमीन पर बोने से फल नहीं आता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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