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________________ १२ न्यायभाष्य के उपर श्री उद्योतकर रचित "न्यायवार्तिक" और उसके उपर श्री वाचस्पति मिश्र विरचित "तात्पर्य टीका" उपलब्ध है। नवम सूत्रात्मक ग्रंथ (वैशेषिक दर्शन का) वैशेषिक सूत्र है । इसके रचयिता श्रीकणाद ऋषि है। वैशेषिक सूत्र १० अध्यायो में विभक्त है। प्रत्येक अध्याय में दो आह्निक है। प्रथम अध्याय के प्रथम आह्निक में द्रव्य, गुण तथा कर्म के लक्षण और विभाग का, दूसरे आह्निक में सामान्य का, दूसरे तथा तीसरे अध्यायों में नव द्रव्यों का, चतुर्थ अध्याय के प्रथमाह्निक में परमाणुवाद का तथा द्वितीयाह्निक में अनित्यद्रव्य-विभाग का, पञ्चम अध्याय में कर्म का, षष्ठ अध्याय में वेद प्रामाण्य के विचार के बाद धर्माधर्म का, ७वें तथा ८वें अध्याय में कतिपय गुणों का, ९ वें अध्याय में अभाव तथा ज्ञान का, १० वें अध्याय में सुख-दुख-विभेद तथा त्रिविध कारणों का वर्णन किया गया है। 'वैशेषिकसूत्र' के उपर श्री आत्रेय का भाष्य और रावण भाष्य पूर्व में था। लेकिन वह हाल में उपलब्ध नहीं है। द्वितीय विभाग का संक्षिप्त परिचय : यह विभाग में षड्दर्शन विषयक १९ कृतियाँ का समावेश किया है। प्रथम कृति “षड्दर्शन समुच्चय - लघुवृत्ति" है। मूलग्रंथ के रचयिता पू.आ.भ.श्री हरिभद्रसूरिजी म. सा. है और लघुवृत्ति के प्रणेता पू.आ.भ.श्री सोमतिलकसूरिजी म.सा. है । इस ग्रंथ में बौद्ध, नैयायिक, सांख्य, जैन, वैशेषिक, मीमांसक एवं लोकायत मत का निरुपण किया है । इस ग्रंथ पर पू.आ.भ.श्री गुणरत्नसूरिजी म.सा. कृत "तर्करहस्यदीपिका' नामक बृहद्वृत्ति भी है। द्वितीय कृति “षड्दर्शन समुच्चयावचूर्णि" है। इस ग्रंथ के रचयिता के नाम के विषय में निर्णायक प्रमाण मिलता नहीं है। लेकिन जैनसाहित्य ग्रंथ कलाप में इस ग्रंथ के रचयिता के रुप में श्री ब्रह्मशान्तिदासजी का नामोल्लेख उपलब्ध होता है । इस ग्रंथ में बौद्ध, न्याय, सांख्य, जैन, वैशेषिक और मीमांसक मत का प्रतिपादन किया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004048
Book TitleShaddarshan Sutra Sangraha evam Shaddarshan Vishayak Krutaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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