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________________ 58. दव्वसंगहमिणं मुणिणाहा दोससंचयचुदा सुदपुण्णा। सोधयंतु तणुसुत्तधरेणं णेमिचन्दमुणिणा भणियं जं।। यो दव्वसंगहमिणं द्रव्यसंग्रह यह मुनियों के स्वामी . दोष समूह-रहित मुणिणाहा दोससंचयचुदा सुदपुण्णा श्रुत में पूर्ण [(दव्वसंगह)+ (इणं)] दव्वसंगहं (दव्वसंगह) 1/1 इणं (इम) 1/1 सवि [(मुणि)-(णाह) 1/2] [(दोस)-(संचय)- (चुद) भूकृ 1/2 अनि ] [(सुद)-(पुण्ण) 1/2 वि] (सोधय) विधि 3/2 सक [(तणु)-(सुत्त)(धर) 3/1 वि] [(णेमिचन्द)-(मुणि) 3/1] (भण-भणिय) भूकृ 1/1 (ज) 1/1 सवि सोधयंतु तणुसुत्तधरेणं शोधन करें अल्प श्रुत के धारक णेमिचन्दमुणिणा नेमिचन्द मुनि के द्वारा रचा गया (कहा गया) भणियं अन्वय- तणुसुत्तधरेणं णेमिचन्दमुणिणा जं दव्वसंगहमिणं भणियं दोससंचयचुदा सुदपुण्णा मुणिणाहा सोधयंतु। अर्थ- अल्प श्रुत के धारक नेमिचन्द मुनि के द्वारा जो यह द्रव्यसंग्रह रचा गया (कहा गया) है (उसका) दोष समूह-रहित, श्रुत में पूर्ण मुनियों के स्वामी (आचार्य) शोधन करें। (70) द्रव्यसंग्रह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004046
Book TitleDravyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2013
Total Pages120
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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