SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय मुनि नेमिचन्द सिद्धान्तिदेव-रचित 'द्रव्यसंग्रह' व्याकरणिक विश्लेषण, अन्वय एवं व्याकरणात्मक अनुवाद सहित अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। _ 'द्रव्यसंग्रह' जैनधर्म-दर्शन को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करनेवाली प्राकृत भाषा में रचित एक महत्त्वपूर्ण रचना है। इसमें कुल 58 गाथाएँ हैं जिनमें छह द्रव्यों, नौ पदार्थों और मोक्षमार्ग का निरूपण किया गया है। यह निरूपण पारम्परिक होते हुए भी कई विशेषताएँ लिये हुए हैं- 1. जीव का स्वरूप निश्चय-व्यवहार नय को आधार मानकर समझाया गया है। 2. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का वर्णन भी निश्चय-व्यवहार नय के माध्यम से किया गया है। 3. ध्यान का वर्णन करते समय उत्कृष्ट ध्यान की रीति भी भलीभाँति समझाई गई है। पण्डित जयचन्दजी छाबड़ा ने लिखा है: “इसमें तीन अधिकार हैं। पहला षद्रव्य, पंचास्तिकाय के निरूपण का अधिकार है। उसमें 27 गाथाएँ हैं। पहली गाथा तो मंगलाचरणरूप है, दूसरी गाथा जीव के नव अधिकारों के नामों के संग्रहरूप है, बारह गाथाओं में जीवद्रव्य का नव अधिकारों से विवरण है, आठ गाथाओं में अजीवद्रव्य का कथन है, फिर पाँच गाथाओं में पंचास्तिकाय का प्ररूपण है। दूसरा सात तत्त्व, नव पदार्थ के निरूपण का अधिकार है। इसमें 11 गाथाएँ हैं। तीसरा (v) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004046
Book TitleDravyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2013
Total Pages120
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy