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________________ ७५० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ० १२ / प्र०३ "उवसामणा दुविहा-करणोवसामणा च अकरणोवसामणा च। जा सा अकरणोवसामणा तिस्से इमे दुवे णामधेयाणि-अकरणोवसामणा त्ति वि अणुदिण्णोवसामणा त्ति वि। एसा कम्मपवादे। जा सा करणोवसामणा सा दुविहा-देसकरणोवसामणा त्ति वि सव्वकरणोवसामणा त्ति वि। देसकरणोवसामणाए दुवे णामाणिदेसकरणोवसामणा त्ति वि अप्पसत्थउवसामणा त्ति वि। एसा कम्मपयडीसु। जा सा सव्वकरणोवसामणा तिस्से वि दुवे णामाणि सव्वकरणोवसामणा त्ति वि पसत्थकरणोवसामणा त्ति वि।" (क.पा./ भाग १४ / पृ.२-९)। "इसकी तुलना कर्मप्रकृति के उपशामनाकरण की पहली और दूसरी गाथा की इस चूर्णि से करना चाहिये १. "करणोवसामणाा अकरणोवसामणा दुविहा उपसामणत्थ। वितिया अकरणोवसामणा तीसे दुवे नामधिज्जाणि-अकरणोवसामणा अणुदिन्नोवसामणा य।-- सा अकरणोवसामणा ताते अणुओगो वोच्छिन्नो।" __२. “सा करणोवसामणा दुविहा-सव्वकरणोपसामणा देसकरणोवसामणा च। एक्केक्का दो दो णामा। सव्वोवसामणाते गुणोवसमणा पसत्थोपसामणा य णामा। देसोपसमणादे तासिं विवरीया दो नामा अगुणोपसमणा अपसत्थोपसमणा य।" "यहाँ यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि उपशामना के ये भेद और उनके नाम कर्मप्रकृति के उपशामनाकरण की पहली और दूसरी गाथा में दिये हैं, उन्हीं के आधार पर चूर्णिकार ने चूर्णि में दिये हैं। किन्तु कसायपाहुड की गाथाओं में उवसामणा कदिविधा (क.पा./ भाग १३/पृ.१९१) लिखकर ही उसकी समाप्ति कर दी गई है। और चूर्णिसूत्रकार ने स्वयं ही गाथा के इस अंश का व्याख्यान करने के लिए उक्त चूर्णिसूत्र रचे हैं। दूसरी बात ध्यान में रखने योग्य है कि चूर्णिसूत्रकार अकरणोपशामना का वर्णन कर्मप्रवाद नामक पूर्व में बतलाते हैं, जब कि कर्मप्रकृति की चूर्णि में लिखा है कि 'अकरणोपशामना का अनुयोग विच्छिन्न हो गया' और कर्मप्रकृति के रचयिता भी उससे अनभिज्ञ थे। "कसायपाहुड के उक्त अधिकार में उपशमश्रेणि से प्रतिपात का कारण बतलाकर यह भी बतलाया है कि किस अवस्था में गिरकर जीव किस गुणस्थान में आता है। गाथा निम्नप्रकार है दुविहो खलु पडिवादो भवक्खयादुवसमक्खयादो दु। सुहुमे च संपराए बादररागे च बोद्धव्वा ॥ १२१॥ (क.पा./ भा.१३) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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