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________________ प्रकाशकीय O ग्रन्थकथा O ग्रन्थसार D संकेताक्षर - विवरण अन्तस्तत्त्व Jain Education International प्रथम खण्ड दिगम्बर, श्वेताम्बर, यापनीय संघों का इतिहास प्रथम अध्याय काल्पनिक सामग्री से निर्मित तर्कप्रासाद १. तीर्थंकरों के सवस्त्र - तीर्थोपदेशक होने की कल्पना २. बोटिक शिवभूति के दिगम्बरमत- प्रवर्तक होने की कल्पना ३. बोटिक शिवभूति के यापनीयमतप्रवर्तक होने की कल्पना ४. कुन्दकुन्द के दिगम्बरमतप्रवर्तक होने की कल्पना ५. कुन्दकुन्द के प्रथमतः यापनीय होने की कल्पना ६. कुन्दकुन्द के प्रथमतः भट्टारक होने की कल्पना ७. उत्तरभारतीय सचेलाचेल निर्ग्रन्थसंघ की कल्पना ८. सचेलाचेल निर्ग्रन्थसंघ के विभाजन से श्वेताम्बर -यापनीय सम्प्रदायों के उद्भव की कल्पना ९. अचेल एवं सचेल जिनकल्पों के व्युच्छेद की कल्पना १०. सामान्यपुरुषों के लिए तीर्थंकरलिंग-ग्रहण के निषेध की कल्पना पृष्ठांक तेईस उनतीस इक्यावन एक सौ इक्यासी For Personal & Private Use Only ३ ३ ३ ४ ४ ४ ५ ५ ६ ६ www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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