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________________ बृहद्गच्छ का इतिहास जैसा कि पीछे हम देख चुके हैं वि०सं० १४०६ के प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में रामचन्द्रसूरि का तो उल्लेख है, परन्तु उनके गुरु आदि का नाम उक्त लेख से ज्ञात नहीं होता, वहीं दूसरी ओर वि०सं० १४११ और वि०सं० १४१३ के अभिलेखों से स्पष्ट रूप उनके गुरु और प्रगुरु तथा उनके गच्छ का भी नाम मालूम हो जाता है। चूँकि ये इस गच्छ ( जीरापल्लीगच्छ) से सम्बद्ध प्राचीनतम साक्ष्य हैं, अत: यह माना जा सकता है कि रामचन्द्रसूरि के समय से ही बडगच्छ की एक शाखा के रूप में जीरापल्लीगच्छ के अस्तित्व में आने की नींव पड़ चुकी थी और शीघ्र ही यह एक स्वतन्त्र गच्छ के रूप में स्थापित हो गया। इस आधार पर रामचन्द्रसूरि को इस गच्छ का पुरातन आचार्य माना जा सकता है। अभिलेखीय साक्ष्यों से रामचन्द्रसूरि के अतिरिक्त वीरसिंहसूरि, वीरचन्द्रसूरि, शीलभद्रसूरि, वीरभद्रसूरि, उदयरत्नसूरि, उदयचन्द्रसूरि, सागरचन्द्रसूरि, देवरत्नसूरि आदि के नामों के साथ-साथ उनके पूर्वापर सम्बन्धों का भी उल्लेख मिल जाता है, जो इस प्रकार है : १. वीरसिंहसूरि के पट्टधर वीरचन्द्रसूरि (वि०सं० १४२९-३८) २. वीरचन्द्रसूरि के पट्टधर शालिभद्रसूरि (वि०सं० १४४०-८३) ३. शालिभद्रसूरि के प्रथम शिष्य वीरभद्रसूरि (वि०सं० १४६८) ४. शालिभद्रसूरि के द्वितीय शिष्य उदयरत्नसूरि (वि०सं० १४८३) ५. शालिभद्रसूरि के तृतीय शिष्य उदयचन्द्रसूरि (वि०सं० १५०८-२७) ६. उदयचन्द्रसूरि के प्रथम शिष्य सागरचन्द्रसूरि (वि०सं० १५२०- १५३२) ७. उदयचन्द्रसूरि के द्वितीय शिष्य देवरत्नसूरि (वि०सं० १५४९ - १५७२) उक्त आधार पर जीरापल्लीगच्छ के मुनिजनों के गुरु-शिष्य परम्परा की एक तालिका पुनर्गठित की जा सकती है, जो इस प्रकार है : १२२ वडगच्छीय देवचन्द्रसूरि I जिनचन्द्रसूरि T रामचन्द्रसूरि (वि०सं० १४११ और १४१३ में जीरापल्ली तीर्थ पर दो देवकुलिकाओं के निर्माता) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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