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________________ १०४ मुनिचन्द्रसूरि मुनिदेवसूरि मुनिभद्रसूरि रत्नदेवगण रत्नप्रभसूर बृहद्गच्छ का इतिहास दलीचंद देसाई, जैन गूर्जरकविओ, द्वितीय संशोधित संस्करण, भाग २, पृष्ठ ५५ ६५ तथा भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे तथा शीतिकंठ मिश्र, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, भाग २, पृष्ठ ३५२-३५८. तथा अगरचन्द्र नाहटा, “हरियाणा के सुकवि मालदेव की नवोपलब्ध रचनायें”, श्रमण, वर्ष २८, अंक - ३, जनवरी १९६६ ई. Jain Education International (यशोभद्र-नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य) देवेन्द्रनरेन्द्रप्रकरणवृत्ति (वि० सं० ११६८); सूक्ष्मार्थसार्धशतकचूर्णि (वि० सं० ११७०); अनेकान्तजयपताकाटिप्पण वि०सं० १९७१ उपदेशपदवृत्ति, ललितविस्तरापंजिका; (प्रकाशित), धर्मबिन्दुवृत्ति (वि० सं० १९८१ से पूर्वं); कर्मप्रकृति - विशेषवृत्ति; अंगुलसप्तति, आवश्यक (पाक्षिक) सप्तति, वनस्पतिसप्ततिका; गाथाकोश; (प्रकाशित), अनुशासनांकुशकुलक; उपदेशामृतकुलक प्रथम और द्वितीय; उपदेशपंचासिका, धर्मोपदेशकुलक प्रथम और द्वितीय, प्राभातिकस्तुति, पार्श्वनाथ स्तवनम् (संस्कृत) (मदनचन्द्रसूरि के शिष्य) धर्मोपदेशमालावृत्ति, (संस्कृत), वि० सं० १४वी पूर्वार्ध, जिनरत्नकोश, पृ० १९६. शांतिनाथचरित्र, (संस्कृत), वि० सं० १३३२, देसाई, जैन साहित्यनो..., कंडिका, ६३३. ( गुणभद्रसूरि के शिष्य) शांतिनाथचरित्र, (संस्कृत), वि० सं० १४१०, जिनरत्नकोश, पृ० ३८०. (हरिभद्रसूरि के शिष्य) वज्जालग्गटीका, (संस्कृत), वि० सं० १३९३, देसाई, जैन साहित्यनो... कंडिका, ६३३. ( वादिदेवसूरि के शिष्य) नेमिनाथचरिउ ( अपभ्रंश) वि० सं० १२३३; रत्नाकरावतारिका (संस्कृत) (प्रमाणनयत्तत्वालोकालंकार की टीका), ५००० श्लोक प्रमाण; उपदेशमाला पर दोघट्टीवृत्ति (वि० सं० १२३८); मतपरीक्षापंचाशत, स्याद्वाद्रलाकरलघुटीका. रामचन्द्रसूरि (वादिदेवसूरि के प्रशिष्य और पूर्णभद्रसूरि के शिष्य) १० द्वात्रिंशिकायें, १ चतुर्विंशतिका, १६ षोषिका, संस्कृत, वि० सं० १३वीं शती उत्तरार्ध, जैनस्तोत्रसंदोह, भाग-१, पृष्ठ १३०-१८९. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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