SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जे लेवाय तेटलु लई लईश, एवी शरत करीऐ." में ते शरत मंजूर राखी अने बीजे दिवसे प्रभातमां आ अंगेनी खातरी करवा जवानु नक्की करी अमे छूटा पड्या. पण रात्रे छाना वनमां जइ पेळा धूर्ते कूबामांथो आम्रफळ दूर कर्यु. सवारे अमो बन्नेए वनमा जइने कूवामां भायु तो फळ न मळयु. हु खोटो ठो. निराश थयेलो हु घेर आव्यो, तेटलामां मारा अक मित्रे मने चेतवणी आपी के "आ तो धूर्त छे. अनी साथे शरत करवाथी हवे ते तारु धन अने स्त्री बन्ने लई जशे " "मने पण हवे अनी धूर्ततानी खातरी थई छे. तो हवे आ संकटमाथी आप मने छोडावा क्षेत्री विनती छे ” राजाओ आना निकाल लाववानु अजितसेनने सेप्यु. ___ अजितसेने शीलवती पासेथी आ अंगे सलाह-सूचना लई उकेल सूचव्यो के-"धन अने स्त्री माळ पर चढावी त्यां राखो नीचे निसरणी मूका. धूत धन अने स्त्रीने लेवाने माळ पर चडवा जतां जेवो बे हाथे निसरणी पकडे, ते ज वखते बे हाथे लेवायेली आ निसरणी लई जा ओम कबु. जेथी शरत पूरी थशे अने धन तथा स्त्री बची जशे." अजितसेने वणिकने कद्देली युक्ति करवाथी वणिकनां धन अने स्त्री बन्ने उगर्या. राजामे पण अजितसेननी बुद्विनी प्रशंसा करी. खंड २ : मुख्य कथा : शीलवतीए निज शीलनी खातरी अंगे आपेल कमल - कमलना दर्शनथी एना शीलनी खातरी अंगे राजाना चार प्रधानोए उपस्थित करेली शंका शीलना प्रतीकरूपे “कमल" आपq. हवे अक वार शीलवती अजितसेनने का, “ मारुशील खंडन करवा देव पण समर्थ नथी. तो अन्यनी शी वात करवी ? मारा मनमां तमारा सिवाय अन्य कोई नथी. पण देववशात् कदाच तमारा मनमा शंका थाय तो? ' अम कही तेणे अक कमल हाथमां ग्रही अजितसेनने आतां कहयु, “ मन, वचन अने काया करीने जो में अन्य पुरुषने वांछयो होय तो आ काल करमाई जाव. जो हुँ शीलवती हो तो आ कमल सदा विकसित रहेजे।" अजितसेने पण आनंदपूर्वक कमलने। स्वीकार को अने सदा एने धारण करतो आनंदथी रहेवा लाग्यो. शील अंगे चार प्रधानोए उपस्थित करेली शंका हवे एक समये शत्रुराज्यनी सामे युद्ध करवा राजा साथे अजितसेनने पण जवानु थयु. शीलवतीथी विखूटा पडवाना विरहथी व्याकुल बनेल अजितसेन न छूटके राजा साथे प्रयाण करे छे. मार्गमां सैन्य एक मरुभूमिमां विश्राम करे छे. अहीं सर्वत्र वनस्पतिना अभाव होय छे, एवा संजोगामां अजितसेन पासे सूवासित कमल जोइ राजाए ते संगे तेने पृच्छा करी. अजितसेने तेने पोतानी पत्नीना “ शीलना प्रतीक' रूप गणावी सर्व वृत्तांत राजाने कहयो. पण राजाने आ वातमां श्रद्धा न उपजी. तेणे पोताना चार प्रधानाने अकान्तमां बोलावी आ बाबतनी चर्चा करी. प्रधानाए कहयु "स्त्रीओ मायावी होय छे. ते बहारथी माया-नेह देखाडे छे. पण अना अंतरमां बोजु ज कंइक होय छे. आ कलियुगमां कोई स्त्री सती होती नथी. अ सर्व धूतारी होय छे." आ पछी तेओओ नारीना “धूर्तपणा" पर-"स्त्री चरित्र" पर पातालसुंदरीनी कथा कही. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy