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________________ (२६) विरहानलथी दग्ध एवी एन। पर 'नमक' लगाडवानं काम करे छे आ भाव कविए लाघवताथी निरूप्यो छे. ते 'स्थुलिगीत' जोवा जे छे. टोडे रही जोइ वाटडी, वाल्हा नयने तृपति न होइ रे, थुलिभद्र तणउ रे संदेसडु रे, पंथीडा कहु मुझ काईके, थुलिभद्र कहु कुणि दीठा रे, महारा बाधव बाधव युनइ वधाइ के, कोश वेशा इम वीनवइ रे ... ... ... ...दु० विरहानलि दाधी देहडी, घडीयन बीसरइ गुण रे, बापीयडउ पीउ पीउ करइ, दाघइ दाघइ लगाविइ लूण के '...२ थु. आदि जिनेश्वर ऋषभदेव'D नानकडे गीत पण एभा काव्यगुणे उल्लेखनीय छे. तेरु मुख दिखत छलिई आनंद, ऋषभदेव विमलाचल-मंडन, नाभि कुला दधि चंद ... ... ...दु० ते० सार सुधा मधुरि छुनि पीबत मोहइ सुर नर वृद कहो बखान कर तन छबि की, मोहन वेलि सुकंद २ ते.२ आ प्रतमां बीजा अनेक नानकडां गीतो छे. भावनी उत्कटता अने शब्दमां लालित्य तथा माधुर्यने लीधे ते आस्वादय बन्या छे; ___आ उपरांत जयवंतसूरि कृत 'लोचन काजल संवाद' नामना अठार कडीना गीतना उल्लेख •जन गुर्जर कविओ मां छे तेमां कविओ ‘लोचन' अने 'काजल' वच्चेना रसिक संवाद आप्यो छे. काव्यना आरंभ चोटदार छे. । नयणां रे गुण रयणां नयणां, ए अणघटती जोडि, काला कज्जल केरइ कारणि, तुझनइ मोटी खाडि रे, असरिस सरसी संगति करतां, आवइ चतुरह लाज, जेहथी सुरजन मांहि हुइ हासुं, तस मि भणइ स्युं काज रे.४ दू० काव्यने अंते कवि प्रशस्तिमा जणावे छे. मन मान्या स्युं सहो ए मिलतां, मनि जन बोल न धरइ, जयवंत पंडित एणी परि बोलई, मिलता साथइं मिलइ रे, जो.५ १ गीतसंग्रह, पृ. ९-१०, २ २ एजन पृ. १४, २ ३ जैन गूर्जर कविओ, संपा. मीहनलाल द. देसाई, मुंबई, १४४, भाग ३, खंड १, पृ. ६७१. ४ अजन पृ. ६७१. ५ अजन पृ. ६७१. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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