SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गारमजरी किशलय रत्नां अहिय कुसुम, फल रत्ता महि रत्त, दाडिमनी इरि सुजनना, वाघइ नेह नित नित. १८८६ राजनजी एणी परि, घणे प्रकारि सनेह, जे परिजाणउ रुपडी, चित्रि धरयो तेह. १८८७ रखे वीसारु चित्तथी, माहारा सम छइ मित्त. थपिणि मोहली जीवनी, समरेयो नित नित्त. १८८८ रखे अहवु जाणता, जे छं हूं परदेसि, जे मनि मान्यां आपणइ, तेहनु हीइ - निवेस. १८८९ अंबरि गाजइ मेहलु, तलिथी नाचइ मोर जे जेहना मनमां वसिया, ते तेहनइ नहीं दूरि. १८९० ते किम कहीइ वेगला, जे मन मांहि वसंति, रात्रि - दिवस जव संभरइ, तव हैडुं ते वेगलांथा दुकडां, जेहसिउं चित्त मिलंति, ते दूकडांथा वेगलां, जे मन मांहि न हुंति. १८९२ विहसंति. १८९१ कांइ अपराध करिया हुइ, अति परिचय प्रेमह थकी, बंधव वीसारु रखे, एता दिननी प्रीति, को अवसरि संमारयो, धरयो अह्मनि चोंति. १८९४ खमयो अमीणा दोस, चित्ति म धरयो रोस. १८९३ उत्तम जे पालाइ सदा, धरि 'इ' कार करिजु, अंतिम अक्षर परिहरी, अह्मनइ बेहुंअ धरिजु. १८९५ मानव मोहन वेलडी, आदई कार एकार, अंतिम अक्षर दुरि करि, धरयो हैया मजारि. १८९६ तूं भूपति इम भणइ रे, ते वाला किम वोसरइ, किहां सायर किहां चंदल, सजन सनेह नवी वीसरइ, बंधव सुणी वत्त, जेहसिउं लागू चित्त. १८९७ Jain Education International किहां मेहां बप्पीह, वीसारता निसि - दीह. १८९८ कीधां जूआं न थाइ, जे सज्जन मन स्युं मिलियां, ते किम वोसारियां जाइ. १८९९ लूणह-पाणी होइ मिलियां, बंधव तूं जिणि देसडइ, तिहां जाणे मुज प्राण, सुनी रडवडइ, किसी न दोसइ सान. १९०० काया For Personal & Private Use Only १३९ www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy