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________________ गारमंजरी कइ विस कइ अमीइ भरियां, गोरी नयणां तुज, प्राण हरइ क्षणि नयणलइ, क्षणि जीवाडइ मुज्झि. १६१७ गोरी तुजमां गुण घणा, अवगुण एक अपार, मारइ विण हथीआरि. १६१८ वेध विलाइ मांणसा, गोरी तोरा पीण थण, अभिनव भल्ल समान, जस उरि लग्गइ सो जीइ, अणु-लग्गा लइ प्राण. १६१९ गोरी एकजि तूं विना, मुज मनि हती ऊजाडि, सफल थयुं दिन आजनु, पहुती नयण - हा डि. वली बली जो जां लगइ, गोरी तुज मुख-चंद, तां लगइ नयन-चकोरडा, पामइ अति आनंद. १६२१ गोरी तुज विरहानलिं, प्रजलइ मोरु चित्त, रमण - महानइ जल चss, तेह बुजावइ जडित्ति. १६२२ जेहनइ नामि सहू बीहइ, आदि करि एकार, गोरी ते तुज उपरइ, मुजनइ दहइ अपार. भर अत्यंतरि जे रहइ, बीय सरइ संजुत्त, तुज उपरि छइ घण, ते जाणइ मुज चित्त. चैत्र थकी जे सातमउ, परिहरि अंत्य उकार, तुज भणी हूं आवीउ, ते तु परि सुविचारि. १६२५ किहां आंबा किहां कोकिला, किहां मेहा किहां मोर, अवसर आइ नवि मिलइ, मांणस नहीं ते ढोर. १६२६ Jain Education International १६२० For Personal & Private Use Only १६२३ १६२८ १६२९ गोरी भुज मनि दुःख थयुं, दुःसह तुझ विरहेण, लाख तर तूं बिना, नवि लग्गइ अचिरेण. १६२७ उरि लग्गा जीवित हरइ, तोरां लोचन - बाण, विस कज्जल महिमा नवउ, दीठां पणि लिइ प्राण. पाइ पडू नुहुरा करूं, गोरी दइ मुज मान, वाहला तो दास हूं, मुज साथइ स्युं मान. गोरी बिरहो ताहरइ, घडीय न मिं रहिवाइ, जिम जल पाखइ माछिलि, तालवेली थाइ. १६३० गोरी मारि म नय. मुज, आलालुंबु टालि अविहड वाचा नेहनी, तूं दक्षिण करि आलि. १६३१ नेह विण नर्याण निहालतां, मांणसडां सूंकाइ, मेहि जवासु सोंचता, सूकी झंखर थाइ. १६ १६२४ १६३२ १२९ www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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