SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शृंगारमंजरी विरह भलु एकी परइं, संगम सुख जणाइ, तेहजि सज्जन संगमि, तनमय विरहि जणाइ. १०२७ सजन ग्रहियां मन भींतरिं, कीधी वाडि सनेह, तु परदेसई किम रहिथा, सुपनि न महेलिया एह. १०२८ सजन देखं जा लगई, तां मनि हुइ समाधि, जब सजन दुरइं गया, तव वाधी असमाधि. १०२९ पहिलउ पडिउ वरांसडु, जे मइ कीउ सनेह, मन आपी परवसि थयां, हवई जीवित संदेह. १०३० जउ जाणउ दुख एवडुं, तु नवि करत सनेह, जिम छाली पाणी पीइ, जलह न अप्पइ देह. १०३१ बाउल-कंट सरीसडा, सजन गुण सुविशाल, पइसंता दीसइ नहीं, भोंतरि सालइ साल. १०३२ वांका बोरि सकांटडा, सजन गुणह समान, खूचीनई पाछा वलिया, जम जम करइ पराणि. १०३३ सजन गुण जिम लूगडूं, मुज मनि बोरि-कंटालि, ऊहे. डुं नवि ऊखडइ, वलगइ तारो तारि. १०३४ मारि कटारि प्राण लि, वरि विष देइ मारि, पणि रे पापी देव तूं , सज्जन विरहि म मारि. १०३५ कइ अमृत कइ विख समा, सज्जन किस्या कहाइ, संगमि अधिका अमीयथी, विरहिं विख सम थाइ. १०३६ तेहवा सजन सनेहडा, जेहवां रुंख पलास, जिम जिम विरहानल जलइ, तिम तिम पल्लव तास. १०३७ हैडा सुपरि वारतां, कां तिइ कोउ सनेह, भुख गइ निद्रा गइ, ए फल लाधां हि. १०३८ हेजि-हीसी तेह करिउ, करतां जाणिउं सुग्नु, निरवहितां हविं दोहिलूं, विख विरहानल दुखु. १०३९ हैया व्यसन वसाइआं, कुडउ करवि सनेह, भूख तरस न सांभरइ, आवटणउं निशि-दीह. १०४० मनि संताप जि तेतलु, जेतु हुइ सनेह, तिल पीलीई तां लगइ, जां लगइ दीसइ त्रेह. १०४१ महि ससनेहां दुखडां, आपि सहिणां होइ, दुध अगनि ऊकालीइ, नीर बलतं जोइ, १०४२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy