SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पउमचरियं : एक सर्वेक्षण - प्रो. सागरमल जैन प्राच्यविद्यापीठ राजापुर रामकथा की व्यापकता राम और कृष्ण भारतीय संस्कृति के प्राण-पुरुष रहे है । उनके जीवन आदर्शों एवं उपदेशो ने भारतीय संस्कृति को पर्याप्त रूप से प्रभावित किया है । भारत एवं भारत के पूर्वी निकटवर्ती देशो में आज भी रामकथा के मंचन की परम्परा जीवित है । हिन्दु, जैन और बौद्ध धर्म परम्परा में राम-कथा सम्बन्धी प्रचुर उल्लेख पाये जाते है । राम-कथा सम्बन्धी ग्रन्थों में वाल्मिकी रामायण प्राचीनतम ग्रन्थ है । यह ग्रन्थ हिन्दु परम्परा में प्रचलित राम-कथा का आधार ग्रन्थ है । इसके अतिरिक्त संस्कृत में रचित पद्मपुराण और हिन्दी में रचित रामचरितमानस भी राम-कथा सम्बन्धी प्रधान ग्रन्थ है, जिन्होने हिन्दु जन-जीवन को प्रभावित किया है । जैन परम्परा में रामकथा सम्बन्धी ग्रन्थों में प्राकृत भाषा में रचित आ.विमलसूरि का 'पउमचरियं' एक प्राचीनतम प्रमुख ग्रन्थ है । लेखकीय प्रशस्ति के अनुसार यह ई.सन् की प्रथम शती के रचना है । वाल्मिकी की रामायण के पश्चात् रामकथा सम्बन्धी ग्रन्थों में यही प्राचीनतम ग्रन्थ है । संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी में रचित रामकथा सम्बन्धी ग्रन्थ इसके परवर्ती ही है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, कन्नड़ एवं हिन्दी में जैनो का रामकथा सम्बन्धी साहित्य विपुल मात्रा में है। जिसकी चर्चा हम आगे विस्तार से करेगे । बौद्ध परम्परा में रामकथा मुख्यतः जातक कथाओं में वर्णित है । जातक कथाएँ मुख्यतः बोधिसत्व के रूप में बुद्ध के पूर्वभवो की चर्चा करती है। इन्ही में दशरथ जातक में रामकथा का उल्लेख है । बौद्ध परम्परा में रामकथा सम्बन्धी कौन-कौन से प्रमुख ग्रन्थ लिखे गये इसकी जानकारी का अभाव ही है । रामकथा सम्बन्धी जैन साहित्य ___ जैन साहित्यकारों ने विपुल मात्रा में रामकथा सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना की है, इनमें दिगम्बर लेखकों की अपेक्षा श्वेताम्बर लेखक और उनके ग्रन्थ अधिक रहे हैं । जैनों में रामकथा सम्बन्धी प्रमुख ग्रन्थ कौन से रहे है, इसकी सूची निम्नानुसार है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.iainelibrary.org
SR No.004024
Book TitlePaumchariyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshvaratnavijay
PublisherOmkarsuri Aradhana Bhavan
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy