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________________ पं. फूलचन्द्र शास्त्री व्याख्यानमाला भूमिका : समझ के विगत में कुछ ऐसी घातक भूलें हुई हैं जिनसे धर्म और विज्ञान के बीच एक बड़ी खाई खिंची हुई सी प्रतीत होती हैं, तथा उसे निम्न रूप में वैज्ञानिकों ने विश्लेषित किया है : [1] 1. धर्म श्रद्धा पर आधारित होता है किन्तु विज्ञान तथ्यों पर । व्याख्यान 2. धर्म तर्क बुद्धि को भावना के आश्रित बनाता है किन्तु विज्ञान उसे विकसित करता है । 3. धर्म संवेगात्मक है, किन्तु विज्ञान अभावात्मक । 4. धर्म का सार्वत्रिक एवं सार्वकालिक आधार विश्वास होता है किन्तु विज्ञान द्वारा स्थापित सत्य कभी भी अंतिम नहीं माने जाते हैं । 3 5. धर्म अपने अवलंबियों को मार्यादा का उल्लंघन करने पर चेतावनी देता है किन्तु विज्ञान समन्वेषी अनुभववादी तथा असीम होता है । है 6. धर्म यथापूर्व स्थिति को सुरक्षित रख दिव्य श्रुत के मताग्रह को स्वीकार करता है, किन्तु विज्ञान परिवर्तन में विश्वास करता है । अचल के सिवाय सभी कुछ 1 7. धर्म द्वारा पाँचवीं से सत्रहवीं सदी तक विज्ञान के विकास को रोकने हेतु यूरोप में विशेष प्रयास किया गया, किन्तु विज्ञान असीमित होता चला गया । 8. धर्म भेदभाव को पनपाता रहा है, किन्तु विज्ञान अपनी सभी शाखाओं में ऐक्य तथा समन्वय स्थापित करना चाहता है । Jain Education International 9. धर्म असहिष्णुता का एकार्थवाची बन चुका है, वहाँ विज्ञान सत्यवादी सहिष्णुता का । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004019
Book TitleJain Dharm Darshan ke Pramukh Siddhanto ki Vaignanikta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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