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________________ १६६ ५ २६० ] वृहद्र्व्यसंग्रहः [पारिभाषिक शब्द शब्द पृष्ठ शब्द शर्कराप्रभा (नरक) ११४ शल्य (३) १८१, सकल चारित्र . . १६२ शशिप्रभा आर्यिका सकल प्रत्यक्ष शिखरी पर्वत १२१, १२४ सकल-भूषण केवली शिवभूति २२७ सक्रिय ७४ ७५ शीता नदी १२३, १२४, १२६, १२७, १२८ सगर (चक्रवर्ति) २२८ शीतोदा नदी १२३, १२४ | सत्य धर्म १०० शुक्र (नक्षत्र) १३४ सद्भूत-व्यवहार नय १२,१८ शुक्र (स्वर्ग) १३८, १३६, १४०, १४२ सन्निकर्ष १८४, १८५ शुक्लध्यान (४) १६६, २००, २०१, २२२, सन्निपात २२६, २२७ समयमूढ़ता शुचि समयसार ४०, २२२ शुद्ध-द्रव्यार्थिक नय ८, ६, ३१, ७६, ८० समवायाङ्ग शुद्ध-निश्चय-नय ४, ५, ७, ८, ६, १०, ११, समाधि १४३, १४४, २२१, २२५ १८, १९, २२, २३, ३०,४७, ५८,७१, ७५, समिति (५) ___६८, ६६, १६०, १६२ ७७, ८२, ६५, ६६, २०२, २२६, २३० समुद्घात शुद्ध पारिणामिक भाव३८,७६,८३,२२१,२३० सम्यक्त्व क्रिया १११ शुद्ध व्यञ्जन-पर्याय सम्यक्त्व मार्गणा शुद्धि (5) सम्यक श्रद्धान शुद्धोपयोग ६४, ६५, १४८, १६०, १६३, | सम्यग्दर्शन ४१,१६०,१६१,१६३,१६४,१६५, २१६, २२५, २३६ १७५,१७६,१७७,१८६ शुभ तैजस समुद्घात सम्यग्ज्ञान १५,१६,१६३,१७७,१७८,१७६, शुभा (नगरी) १२८ १८०,१८१,१८२,१८६ शुभोपयोग ६४,१४८,१५७,१६२,१६३,२०४ सयोगिगुणस्थान ३५,३६,४८,१४८,१४६ शूद्र सराग चारित्र १६०, १६३ सराग सम्यक्त्व १५१, १७५ शून्य (ज्ञान) शौच (धर्म) सरोवर सांघाति स्पर्द्धक ६७ शंकादि (दोष) १५८ शंखा (देश) २०३, २०५ सर्वापद १२६ २०६, ६८७ श्रावक सर्वाज्ञ ३४,६४, ११८, १६१, १६२, १६३ सलिला (देश) १२६ श्रीपाल (राजा) १५०,१५१ श्रुतज्ञान सविपाक निर्जरा १६,१७६,१८५,२२६,२२७,२२८ श्रेणिक (राजा) सहकारी कारण ५३,५४,५५,६३,६५,१६६, . १७०,१७१,१७२,१७३,१७४ ११६, १४० सहस्रार (स्वर्ग) १३८, १३६, १४०, १४२ साकार (उपयोग) षोडश भावना १५७ । साधु २१६ २१७ 38 ६१ ११० १२१ ~ RI २२६ श्रेणीबद्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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