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________________ वृहद् द्रव्य संग्रहः [III पृष्ठ विषय पृष्ठ ७४-७८ | जीव- पुद्गल - संयोग से आस्रव आदि ८३ परिणामी, शेष अपरिणामी ७४, ७५ जीवपुद्गलसंयोग विनाश से संवर आदि ८३ पुद्गल मूर्तिक, शेष मूर्तिक ७४, ७५ | जीव अजीव की पर्याय आस्रव आदि ८३ ७४, ७५ | आस्रव आदि ७ पदार्थों का लक्षण ८४ क्षेत्रवान आकाश जीव पुद्गल सक्रिय, शेष अक्रिय ७४, ७५ ㄨ ७६ ७६ ७६ कर्त्ता शेष कर्त्ता किंतु कारण ७४, ७६ जीवों का परस्पर उपकार अगुरुलघु के परिणाम स्वभाव पर्याय जीव के शरीर, मन आदि का कर्त्ता पुद्गल७६ 'गति' आदि के 'कर्ता' धर्मादि ४ द्रव्य जीव शुद्ध-निश्चय से द्रव्य व भाव पुण्यपाप का कर्त्ता नहीं, अशुद्ध-निश्चय से कर्चा ७६ पुद्गलादि अपने परिणामों के कर्त्ता छह द्रव्यों की सर्वगतता व्यवहार नय से द्रव्यों का परस्पर प्रवेश ७७ कौन जीव उपादय है ७७ ७७ विषय-सूची ] विषय चूलिका - tray शुद्ध-बुद्ध-एक-स्वभाव का अर्थ 'चूलिका' का अर्थ दूसरा अधिकार ७७ ७८ ७८ जीव जीव के परिणमन से आस्रवादि ७ जीव के परद्रव्य जनित उपाधि - गृहण जीव के परपर्याय रूप परिणमन निश्चय से जीव निजस्वभाव नहीं छोड़ता ८० 'परस्पर सापेक्षता' कथंचित् परिणामित्व ८० हेय व उपादेय तत्वों का कथन ८१ Jain Education International ७६ - १५६ | अशुभोपयोग १ से ३ गुणस्थान तक ६४ ६४ ६४ शुभोपयोग चौथे से छटे गुणस्थान तक ६४ 'शुभोपयोग' शुद्धोपयोग का साधक शुद्धोपयोग (एकदेश- शुद्धनिश्चय) ७ से १२ गुणस्थान तक 'श्रावक' पाँचवें गुणस्थानवर्ति गुणस्थानों में प्रकृतियों का संवर 'शुद्धोपयोग' न तो मिथ्यात्व - रागादिवत् अशुद्ध, न केवलज्ञानादि की तरह शुद्ध ६५ केवलज्ञान का कारण सावरणज्ञान निगोदिया का ज्ञान क्षयोपशमिक क्षयोपशमिकज्ञान केवलज्ञान का अंश नहीं६७ क्षयोपशम का लक्षण ६६ ६६ ६७ भव्य का लक्षण सर्वघाति व देशघाति स्पर्द्धक व उपशम ६७ संवर के कारण या भावसंवर के भेद ἐπ एकदेश शुद्ध-निश्चय का लक्षण . शुद्ध पारिणामिक भाव ध्येय है, ध्यान नहीं-३ | निश्चय व व्यवहार व्रत समिति आदि ६६ it is निश्चय रत्नत्रय का साधक व्यवहार कौन जीव किस तत्त्व का कर्त्ता 'सम्यग्दृष्टि' दुर्ध्यान से वञ्चनार्थ व संसार - स्थिति के नाशार्थं पुण्यबंध करता है। -- किस नय से जीव किस तत्त्व का कर्त्ता परम शुद्ध-निश्चय से बंधमोक्ष नहीं ८ ८१,८२ भाव व द्रव्य आस्रव भाव आस्रव के भेद ८२ ८२ ८६ मिध्यात्व आदि भाव स्त्रव का लक्षण ८६ 'योग' वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से ८७ द्रव्य आस्रव ज्ञान को आवृत करनेवाला ज्ञानावरण, ६१ बंध, द्रव्यबंध, भावबंध ८६ प्रकृति, प्रदेश, स्थिति, अनुभाग बंध आठों कर्मों का स्वभाव बंध के कारण आस्रव व बंध का अन्तर भावसंवर, द्रव्यसंवर ८२ ८२ ८२ ६० ६१ ६०, ६२ ६.२ ६३ परमात्मा का स्वरूप ६४, ६८ अशुद्ध-निश्चय १ से १२ गुणस्थान तक ६४ ६४ For Personal & Private Use Only ६५ www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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