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________________ २४ सुनकर सब कुछ जानिए धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो ! ___ कल हमने 'बोधि-दुर्लभ-भावना' के विषय में कुछ विचार किया था । इसका अर्थ है-बोध प्राप्त होना बहुत ही दुर्लभ है । इस संसार में व्यक्ति को धन, मान, परिवार एवं अन्य सभी वस्तुएँ सहज ही यानी थोड़ा-सा प्रयत्न करते ही मिल सकती हैं, किन्तु धर्म-बोध होना बड़ा कठिन है। __ कदाचित शुभ संयोग से वीतराग-वाणी को सुनने का अवसर व्यक्ति पा भी ले, किन्तु इस कान से सुनकर उस कान से निकाल दे तो सुनने से क्या लाभ है ? हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि लोक-लज्जा से या धर्मात्मा कहलाने की इच्छा से लोग प्रवचन-स्थल पर आकर बैठते हैं, सामायिक ग्रहण कर मुखवस्त्रिका भी बाँध लेते हैं, पर जब धर्म के विषय में बताया जाता है तब या तो नींद आने लगती है और नहीं तो आँखें घड़ी की ओर देखती रहती हैं कि कब व्याख्यान समाप्त हो और दुकान पर पहुंचे। इस पर भी जितनी देर तक वे बैठे रहते हैं ऐसे अनमने ढंग से कि सुना हुआ केवल उनके कान तक ही रहता है, अन्दर नहीं जा पाता। इसका कारण यही है कि धर्म-श्रवण में उन्हें रुचि नहीं होती तथा वीतरागों की वाणी उनके चित्त को बोध नहीं दे पाती। पर जब मन ही अस्थिर रहेगा और स्थानक में बैठे हुए भी व्यापार-धन्धे की ओर लगा रहेगा तो भगवान की वाणी क्या कर सकेगी? वह तभी लाभ पहुंचाएगी, जबकि व्यक्ति उत्साह और उत्सुकतापूर्वक उसे समझेगा और ग्रहण करेगा, जैसे चातक वर्षा की बूंदों को ग्रहण करता है। श्री स्थानांगसूत्र में कहा गया हैअसुयाणं धम्माणं सम्मं सुणणयाए अब्भुट्ठयव्वं भवति । सुयाणं धम्माणं ओगिण्हणयाए अवधारणयाए अब्भुढे यव्वं भवति ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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