SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - कर आस्रव को निर्मूल २४५ बुद्धि संवर मार्ग की ओर न बढ़कर आस्रव के मार्ग पर बढ़ जाएगी। मिथ्यात्व ऐसा ही करता भी है । वह बड़े-बड़े विद्वानों एवं ज्ञानियों को अपने चक्कर में डालकर उलझा लेता है और वे अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए तथा पांडित्य का बोझ अपने मस्तक पर लादे हुए आस्रव के मार्ग पर बढ़ चलते हैं । क्योंकि उनका ज्ञान मिथ्याज्ञान के रूप में परिवर्तित हो जाता है और वे अपनी शक्ति या बुद्धि को अहंकार में डुबोकर औरों की निंदा एवं कुतर्क में लगा देते हैं। शास्त्र कहते भी हैं सयं सयं पसंसंता, गरहंता परं वयं । जो उ त्तत्थ विउसन्ति, संसारं ते विउस्सिया । -सूत्रकृतांग १-१-२-२३ अर्थात्-जो अपने मत की प्रशंसा तथा दूसरों के मत की निंदा करने में ही अपना पांडित्य दिखाते हैं, वे एकान्तवादी संसार-चक्र में घूमते ही रहते हैं। इस प्रकार मिथ्यात्व जिस आत्मा में रहता है उसी को कर्मों से जकड़ देता है । इसके नाग-पाश में फंसकर बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति भी पशुओं से गया बीता आचरण करने लगता है । यह मानव को इस भ्रम में डाल देता है कि वह अपने जीवन का हित कर रहा है, किन्तु वास्तव में होता है अहित, और इस प्रकार ज्ञानामृत के बहाने यह उसे अज्ञानरूपी विष पिलाकर नरक में भेज देता है। इसलिए कवि का कहना है कि-'भाई ! सच्चे देव, सच्चे गुरु और सच्चे धर्म का अवलम्बन लो ताकि आत्मा पतन की ओर न बढ़कर उत्थान की ओर अग्रसर हो सके । आगे कहा है जो वीतराग सर्वज्ञ लोक हितकारी, हैं जीवन-मुक्त अशेष आत्मगुणधारी। उनकी है कथनी सत्य, तथ्य प्रियकारी, कर ऐसी श्रद्धा बनो मार्ग-अनुसारी। है धन्य भाग यह श्रद्धा जिसने पाई __ कर आस्रव को । जिस ज्ञानी ने आस्रव स्वरूप पहचाना, संसार वृक्ष का बीज जिन्होंने जाना। फिर रहा उन्हें क्या तत्त्व भला अनजाना, पा लिया उन्होंने जीवन-रस मनमाना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy