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________________ इहलोक मीठा, परलोक कोणे विठा १०६ राजा मुनिराज के सामने तो पहुँच गया, पर घमंड के मारे बिना नमस्कार आदि किसी प्रकार का विनय किये, सीधा प्रश्न कर बैठा- "क्या आप आत्मा और शरीर को अलग मानते हैं ?" बंधुओ, संत कभी आदर, सम्मान या नमस्कारादि के भूखे नहीं होते, किन्तु चित्त मंत्री की प्रार्थना के अनुसार उन्हें राजा को रास्ते पर लाना था, अतः अपनी सहज सौम्यता एवं मधुर मुस्कान के साथ बोले___ "राजन ! आपके प्रश्नों का मैं भली-भाँति उत्तर दूंगा, किन्तु प्रश्न पूछने से पहले आपको ध्यान रखना चाहिए कि सज्जन पुरुष सदा शिष्टाचार का पालन करते हैं । आप तो एक देश के राजा हैं और जानते ही हैं कि अगर आपके दरबार में कोई भी आपके समक्ष आता है तो सर्वप्रथम आपको प्रणाम या अभिवादन करके ही अपनी बात आपके सामने रखता है। फिर यह तो 'धर्मसभा है और आप एक संत के समक्ष खड़े हैं। इस स्थिति में आप स्वयं सोच सकते हैं कि प्रश्न पूछने से पहले आपको किस प्रकार अपने उपयुक्त शिष्टाचार का पालन करना चाहिए ?" राजा प्रदेशी अपनी भूल को समझ गया और यह भी समझ गया कि महाराज की बात यथार्थ है, किसी भी व्यक्ति को शिष्टाचार का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, फिर मैं भी तो एक मुनि के सामने आया हूँ और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान करना चाहता हूँ, अतः नमस्कार न करके मैंने गलती की है । इन विचारों के परिणामस्वरूप राजा ने केशी स्वामी को नमस्कार किया और कहा___ "मुझसे वास्तव में भूल हुई महाराज ! पर क्या मैं अब आपके समीप बैठकर कुछ प्रश्न कर सकता हूँ ?" केशी श्रमण ने उत्तर दिया- "अवश्य कर सकते हो राजन् ! प्रसन्नतापूर्वक बैठो, बगीचा भी तो तुम्हारा ही है, हम तो थोड़े समय के लिए ठहरे हैं।" प्रत्यक्ष में तो केशी श्रमण ने राजा को सहर्ष बैठने की तथा प्रश्न पूछने की अनुमति दी ही, साथ ही मन में विचार किया कि राजा में लोक व्यवहार, मर्यादा एवं विनय की भावना अभी सर्वथा मरी नहीं है और प्रयत्न करके समझाने तथा उपदेश सुनने पर यह अवश्य ही सन्मार्ग पर आ सकता है। उपदेश के अयोग्य कौन ? गौतम कुलक ग्रन्थ में उपदेश किसे नहीं देना चाहिए इस विषय में कहा गया है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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