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________________ चार दुष्कर कार्य ३०३ पहुँचा । तम्बोली से एक पान लगाने के लिए कहते समय बोहरे की दृष्टि उस दुकान के पास ही खड़े फकीर पर पड़ी । फकीर अपने शरीर पर एक मैली-कुचैली तहमद पहने हुए था । बोहरे ने तम्बोली से पान लेकर खाया और रुपये में से बचे हुए कुछ पैसे फकीर की ओर बढ़ाते हुए बोला - " ईद मुबारिक हो मियां ! लो यह पैसे लो ।” फकीर ने बोहरे की उदारता पर कुछ व्यंग करते हुए कहा - " इतने से पैसों से आप ईद मना रहे हैं क्या ? अगर सच्ची ईद मनाना है तो इस फकीर को पूरी तरह प्रसन्न करो। " बोहरे ने यह सुनकर ध्यान से फकीर को देखा और कहा - " भाई जान ! तुम्हारी बात सही है । इतने पैसों से मेरा ईद मनाना व्यर्थ है । बोलो, आज तुम्हें किस प्रकार खुश करू ?” फकीर ने उत्तर दिया- " मेहरबान ! इस फटी तहमद को पहनते हुए मुझे कई वर्ष हो गये हैं, अतः सच्ची ईद मनाना है तो मुझे अपने पहने हुए ये कपड़े दे दो और मेरी तहमद तुम ले लो ।” बोहरे ने यह सुनते ही अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिये तथा वह बढ़िया पोशाक फकीर को देकर स्वयं ने फकीर की कई स्थानों से फटी हुई मैली-कुचैली तहमद स्वयं पहन ली। तत्पश्चात् उसी वेष में वह बीच बाजार में होता हुआ अपने घर की ओर चल दिया । मार्ग में उसके कई दोस्त मिले और उसके उस वेष को देखकर हैरान होते हुए पूछने लगे "आज ईद के दिन यह क्या हो गया है आपको ? ऐसी गन्दी और फटी तहमद पहने क्यों घूम रहे हैं ?" बोहरे ने उत्तर में केवल यही कहा – “दोस्तो आज मैंने सच्ची ईद मनाई है ।" कहने का आशय यही है कि प्रत्येक मनुष्य में चाहे वह अमीर हो या गरीब, सहज उदारता एवं प्राणियों के प्रति सहानुभूति की भावना होनी चाहिए । दान का महत्व दी गई वस्तु के मूल्य से नहीं माना जाता अपितु देने वाले की भावना पर निर्भर होता है । महाराज भोज बड़े दानवीर थे । वे किसी के भी द्वारा सुन्दर श्लोकों की रचना करने पर एक-एक श्लोक के लिए एक-एक लक्ष स्वर्ण मुद्राएँ दान में दे दिया करते थे । श्लोक की रचना के लिए एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ बहुत अधिक होती थीं, पर भोज इस बहाने से दीन-दरिद्र या सरस्वती के उपासकों की सहायता करने की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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