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________________ २६८ आनन्द प्रवचन | छठा भाग छात्र ने उत्तर दिया- "एक चम्मच।" इस पर वैद्यजी ने कहा- 'अब तुम जा सकते हो।" शिष्य गुरु के आदेशानुसार वहाँ से चल दिया, किन्तु उसके हृदय में अपने अन्तिम उत्तर के विषय में सन्देह बना रहा । वह विचार करने लगा कि 'एक चम्मच औषधि तो बहुत अधिक होती है और अमुक रोगी उसे सह नहीं सकता।' यह आते ही वह पुनः लौटकर परीक्षा भवन में आया और बोला ___"गुरुजी ! मुझसे बड़ी भूल हो गई है । आपने जैसे रोगी के लिये पूछा था, वैसे रोगी को वह औषधि एक चम्मच नहीं वरन् केवल दो रत्ती देनी चाहिए।" वैद्यजी छात्र की बात सुनकर बोले-"अब तुम्हारे भूल सुधारने से क्या होता है ? वह रोगी एक चम्मच औषधि खाकर अब तो मर चुका है।" - वैद्यजी के कहने का अभिप्राय यही था कि वैद्य को औषधि देने से पहले खूब सोच-विचारकर ही मरीज को दवा देनी चाहिए । अन्यथा थोड़ी सी भूल या असाव. धानी रोगी का प्राण ले सकती है। ठीक यही हाल हमारे जीवन का भी है । अगर हमें अपने जीवन को सार्थक बनाना है और अपनी आत्मा को इसके शुद्ध स्वरूप में लाना है तो बड़ी सतर्कता और सावधानी से अपने लक्ष्य को बनाकर उसके अनुसार करना है। अगर इसमें कहीं भूल हो गई यानि कोई दुर्गुण हृदय में घर कर गया या साधना-पथ पर चलती हुई आत्मा चूक गई तो फिर क्षण भर में ही सारे किये-कराये पर पानी फिर जाएगा। कहा भी है मनोयोगो बलीयांश्च, भाषितो भगवन्मते । यः सप्तमी क्षणार्धन, नयेद्वा मोक्षमेव च ।। वीतराग सर्वज्ञ प्रभु के मत में मनोयोग को इतना बलवान बताया गया है कि वह आधे क्षण में सातवें नरक में और आधे ही क्षण में मोक्ष में पहुंचा देता है। यह गाथा भी यही बताती है कि अगर मन के भाव उत्कृष्ट हो जाते हैं तो वह आधे क्षण में ही समस्त गुणस्थानों को पार करता हुआ आत्मा को मोक्ष में पहुँचा देता है और कहीं वह पतित हो जाता है तो चाहे व्यक्ति श्रावक हो या साधु, आधे क्षण में सातवें नरक का बंध भी कर लेता है। ___ साधारणतया सबकी यह धारणा होती है कि जिस व्यक्ति ने संयम ग्रहण कर लिया या साधु का बाना पहन लिया, वह स्वर्ग ही जाता है, उसकी आत्मा किसी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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