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________________ १७० आनन्द प्रवचन | छठा भाग पर आगे कहा है कि इन्सान वही है जो गिरकर भी सम्हल जाता है । गलतियां और भूलें होना कोई बड़ी बात नहीं है, वे मनुष्य से ही होती हैं किन्तु अपनी भूलों का सुधार कर लेने वाला सच्चा इन्सान कहलाता है । दूसरे शब्दों में, मार्ग से च्युत होना असम्भव नहीं है, मनुष्य पथ-भ्रष्ट हो जाता है, किन्तु सच्चा इन्सान वह है जो पुनः सही मार्ग ढूंढकर उस पर चल पड़ता है। सुमार्ग पर चलने वाला पराये दुख-दर्द से दुखी होता है तथा उन्हें मिटाने का प्रयास करता है । ऐसा व्यक्ति कभी स्वार्थी नहीं बनता तथा प्रत्येक जरूरतमन्द के काम आता है। यही सच्चे मानव या इन्सान के लक्षण होते हैं। कविता में आगे कहा गया है अगर गलती रुलाती है तो रस्ता भी बताती है । मनुज गलती का पुतला है ये अकसर हो ही जाती है । जो गलती करके पछताये, उसे इन्सान कहते हैं । कवि का कथन है कि गलती या भूल इन्सान से ही होती है। किन्तु गलती अगर पहले रुलाती है तो बाद में सही मार्ग भी दिखा देती है। आप सोचेंगे कि यह कैसी बात है ? गलती किस प्रकार मार्ग बताती है ? इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि जो व्यक्ति ठोकर खाता है वही बाद में संभल कर चलने का प्रयत्न करता है । इसी विषय की अगर अधिक विवेचना की जाय तो स्पष्ट समझा जा सकता है कि मुमुक्षु व्यक्ति यद्यपि बहुत सावधानी रखता है कि उसके द्वारा कोई दुष्कृत्य न हो पाये । किन्तु मन की अस्थिरता एवं चपलता के कारण वह मन से, वचन से और कभी-कभी तन से भी गिर जाता है । किन्तु गिरने के पश्चात् वह गिरा ही रहे, यह आवश्यक नहीं है। अपने पतन पर वह पश्चात्ताप करता है, पूर्ण निष्कपट एवं सरल भाव से अपने दोषों के लिए गुरु के समक्ष आलोचना करके प्रायश्चित्त करता हुआ पुनः अपनी गलतियों को न दुहराने की प्रतिज्ञा करता है । इस प्रकार जो गलतियाँ उसे दुखी करती हैं, रुलाती हैं, वे ही कुछ समय पश्चात् सही मार्ग भी बताती हैं। एक उर्दू भाषा के कवि ने भी अपने शेर में कहा है कि गलतियाँ हो जाने पर इन्सान को सोचना चाहिए कि तुहमत चन्द अपने जिम्मे धर चले । किसलिए आए थे हम क्या कर चले। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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