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________________ मिलें कब ऐसे गुरु ज्ञानी ? घड़ी घड़ी घड़ियाल पुकार कही है, बहुत गयी है अवधि अलप ही रही है। सोवै कहा अचेत, जाग जप पीव रे ! चलिहै आज कि काल बताऊ जीव रे ॥ काल फिरत है हाल रैण दिन लोई रे ! हणे राव अरु रंक गिणे नहिं कोइ रे। यह दुनिया बाजिद बाट की दूब है, पाणी पहिले पाल बँधे तू खूब है ।। ये सुन्दर पद्य कवि बाजिद के हैं। वे अपने आत्मानुभव से महामानवों की भावनाओं को बता रहे हैं : भव्य पुरुषों की अन्तरात्मा कहती है- अरे जीव ! दिन-रात अविराम गति से बोलने वाली घड़ी कहती है कि तेरी बहुत जिन्दगी निरर्थक चली गई है और अब तो बहुत थोड़ी ही बची है। इसलिये प्रमाद-रूपी निद्रा में अचेत-सा क्यों पड़ा हुआ है ? अब भी शीघ्र जाग, और प्रभु का नाम जप । इस जीवन का क्या भरोसा है ? तू बटोही के समान ही यहाँ आया है और आज या कल कभी भी प्रयाण कर सकता है। आगे कहते हैं -- "नादान जीवात्मा ! क्या तू नहीं देखता कि काल तो अहर्निश प्राणियों को इस लोक से ले जाने की ताक में धूमता फिरता है और बिना यह देखे कि सामने राजा-महाराजा हैं या दीन-दरिद्र, वह मौका पाते ही उन्हें ले उड़ता है । इस प्रकार यह संसार केवल मार्ग में उगी हुई दूब के समान क्षणिक है । अतः जल्दी जाग उठ, तथा मृत्यु-रूपी पानी का प्रवाह आने से पहले शुभ-कर्मों की पाल बाँध ले जिससे संसार-सागर में तुझे अनन्त काल तक डूबना-उतरना न पड़े।" तो बंधुओ ! इसी प्रकार महा-मानवों की आत्माएं अपने आपको उद्बोधन देती रहती हैं और इसीलिए वे सदा जागरूक रहकर चाहे एक स्थान पर रहें और चाहे विचरण में, प्रतिपल अपनी साधना को उन्नति की ओर अग्रसर करते रहते हैं। उनके हृदय में अपनी आत्मा के उद्धार की तथा संसार के अन्य प्राणियों के कल्याण की भावना भी बनी रहती है। इसीलिए वे वर्षाकाल के अलावा भगवान के आदेशानुसार आर्य एवं अनार्य क्षेत्रों में विचरते हुए धर्म प्रचार करते हैं तथा अज्ञानी प्राणियों को उद्बोधन देकर उन्हें आत्म-शुद्धि के मार्ग पर लाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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