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________________ आनन्दप्रवचन | पांचवां भाग कवि सुन्दरदास जी ने भी अपने एक पद्य में कहा हैकाहू सों न रोष तोष, काहू सों न राग द्वेष, काहू सों न बैर भाव, काहू सों न घात है । काहू सों न बकवाद, काहू सों नहीं विषाद, काहू सों न संग, न तो काहू पच्छपात है ।। काहू सो न दुष्ट बैन, काहू सों न लेन देन, ब्रह्मा को विचार कछू और न सुहात है। सुन्दर कहत सोई, ईसन को महाईस, सोई गुरुदेव जाके दूसरी न बात है ॥ सुन्दरदास जी कहते हैं- 'मेरे तो वही गुरु हैं जो किसी से रुष्ट और किसी से तुष्ट नहीं होते, किसी से राग-द्वेष नहीं रखते, किसी से वैरवाभ रखकर उसकी बात करने का प्रयत्न नहीं करते, किसी से बकवाद करते हुए पराजित होकर दुख का अनुभव नहीं करते तथा किसी को कटु वचन नहीं कहते । आगे कहते हैं --जो किसी की स्वार्थवश संगति नहीं करते और न ही कभी उसका पक्ष लेते हैं। वे केवल प्रभु की भक्ति में लीन रहते हैं और उसके अलावा उन्हें कुछ भी नहीं सुहाता । बस वे ही मेरे गुरु और ईश्वर से भी बड़े हैं । वस्तुतः ईश्वर की भक्ति करने वाले विरले ही होते हैं। आज संसार में सैकड़ों व्यक्ति ऐसे हैं जो थोड़ा सा कष्ट आते ही कहते हैं- इस दुख से तो साधु हो जाना अच्छा और घर में भी किसी से लड़ाई होते ही साधु बन जाने की धमकियाँ देने लगते हैं । एक मनोरंजक उदाहरण इस विषय में है। एक घर में दो पति-पत्नी रहा करते थे। पति का स्वभाव बड़ा चिड़चिड़ा और क्रोधी था, किन्तु पत्नी बड़ी चतुर और नरम स्वभाव की थी। पति को क्रोध में देखकर वह अपनी गलती न होने पर भी प्रायः क्षमा माँग लिया करती थी। पर पति प्रसन्न नहीं होता था और हमेशा उसे घर छोड़कर सन्यासी बन जाने की धमकी दिया करता था। एक दिन पत्नी ने अपने पति से मजाक में कहा-'तुम रोज रोज घर छोड़कर सन्यासी बनने की धमकियाँ देते हो, पर सन्यासी बन नहीं सकते । साधुपना पालना हंसी-खेल नहीं है। मन के सारे विकारों का तथा लोभ-लालच का भी त्याग करना पड़ता है।" पति बोला- "अगर तुम ऐसा कहती हो तो तो मैं कल ही सन्यासी बनकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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