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________________ महल या मशान ...! २६१ पूज्य श्री जयमल जी महाराज एक महान् संत थे और उन्होंने अपने दीक्षा काल में सोलह वर्ष तक एकांतर तप किया, तथा बावन वर्ष तक सोये नहीं थे । अर्थात् दिन या रात में कभी भी नींद नहीं लेते । वे विचरण करते हुए एक बार बीकानेर की तरफ पधारे । उन दिनों कार में यतियों का प्रभाव था । यति लोगों को जैसे ही जयमल जी महाराज के उधर आने का समाचार मिला उन्होंने महाराज श्री को बीकानेर शहर में आने से रोकते हुए स्पष्ट कह दिया दरवाजा के भीतर तुमको धरवादां नहीं पैर | करना हो जो करलो संतां आ पड़ी बीकानेर हो-जाने दां नाहीं हरगिज अन्दर में बीकानेर के । **** तियों की यह बात सुनकर श्री जयमल जी महाराज न आवेश में आए और न ही उन्होंने किसी प्रकार का आग्रह किया । केवल यही कहा समता सागर पूज्य पयं करां नहीं तकरार | राजा जी को हुकम होसी तो करसा यहाँ से बिहार होक्यूं थे यूं बरजो जातां अंदर में बीकानेर के || सिर्फ इतना कहकर पूज्य जयमल जी महाराज शहर से बाहर श्मशान में जो छतरियाँ बनी हुई थीं, उन्हीं में एक कुम्हार से आज्ञा लेकर ठहर गये । और फिर क्या हुआ ? पूरे आठ दिन तक अपने शिष्यों सहित वे बिना अन्न और जल लिये वहीं श्मशान की छतरियों में ठहरे रहे । कितना कठिन परिषह उन्हें उठाना पड़ा ? आज व्यक्ति अन्न के अभाव में तो फिर भी कुछ दिन गुजार लेता है, पर जल के बिना शरीर की क्या स्थिति होती है यह अंदाज अनुभव के बिना नहीं किया जा सकता । पर वे सच्चे संत थे अतः 1. भूख-प्यास के ऐसे जबर्दस्त परिषह के सामने भी नहीं झुके और न ही उन्होंने कहीं अन्यत्र जाने का विचार किया । पूर्ण शांति और समतापूर्वक अपने ज्ञान-ध्यान एवं आत्म-चिंतन में लगे रहे । तपाराधन करते हुए वे Jain Education International यहाँ आपको यह बताना आवश्यक है कि जोधपुर के रामकुंवर बाई थी और वह बीकानेर के दीवान को ब्याही श्री जयमल जी महाराज बीकानेर पधारे उस समय रामकुंवर के पद पर थे । महाराज श्री विशेषकर रामकुंवर बाई की प्रबल हा बोकानेर की ओर पधारे भी थे । दीवान साहब की पुत्री गई थी । जिस समय बाई के पुत्र दीवान विनती के कारण For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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