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________________ प्रस्तावना कहाँ धरयौ तिन्हिं ध्यान अखै कह लियौ ध्यान धरि। बैंत थंभ-सम कहा तज्यौ को मित्र कवन अरि। कीनी कवन बिलोकि दया मत कौनु प्रकार से। कह सौ तजे ममत्व कवन कहिये सो सासे।। तासु नाम अंक नव आदि तै अंत अंक सौं अर्थ पिन। तीर्थंकर मन तैं अंत मैं वर्धमान दी जैत जिन।। जोग., २/११/४ अर्थात् उक्त पद में पहला प्रश्न है— “ध्यान कहाँ रखा?" इसका उत्तर निकला “वन' में। दूसरा प्रश्न है, ध्यान धारण करके क्या प्राप्त किया? उत्तर है- अक्षय धन अर्थात् निधि। तीसरा प्रश्न है बैंत के स्तम्भ के समान. किस वस्तु का त्याग किया? उत्तर है- मान का. चौथा प्रश्न है- कौन मित्र और शत्रु कौन है? उत्तर है, "नन" अर्थात् कोई नहीं। पाँचवा प्रश्न है- किसको देखकर दया प्रकट की? उत्तर है-दीनों को देखकर। छठवाँ प्रश्न है- कौन से मत को प्रकट किया? उत्तर है- जैन मत को। सातवाँ प्रश्न है-ममत्व का त्याग किससे किया? उत्तर है- शरीर से। आठवाँ प्रश्न है- शाश्वत क्या है? उत्तर है-जिनेन्द्र भगवन। अन्तिम और नौवाँ प्रश्न हैं- अन्तिम तीर्थंकर कौन हैं? उत्तर है- वर्धमान दी जैत जिन। इस प्रकार एक ही छन्द में प्रश्नोत्तरी शैली . में प्रश्न और उत्तर दोनों ही समाहित हैं। (२) छप्पय अंतलापथ . इस छन्द के नाम से ही विषय स्पष्ट हो जाता है। इसमें कवि ने भगवान नेमिनाथ का दृष्टान्त देते हुए बतलाया है कि यह संसार अस्थिर है, इसलिए तीर्थंकर नेमिनाथ की तरह इसका त्याग करके अपने आन्तरिक भाव रूपी पथ की ओर निहारो। उसी में आत्मा का कल्याण है। इस छन्द के अन्तर्गत १० प्रश्न छिपे हुए हैं, जिनके उत्तर अंतिम पंक्ति के अन्तिम चरण में निहित हैं। इस चरण में १० अक्षर हैं। उसमें से पहले ९ अक्षरों के साथ अन्तिम "ग" अक्षर को मिला-मिलाकर ९ प्रश्नों के उत्तर बनते हैं और दसवें प्रश्न का उत्तर दस अक्षरों को मिलाकर बनता हैं। जैसे- भोग, जग, नाग, दिग, मग, नग, रोग, धिग, खग और “भोजनादि मन रोधि खग।” (विशेष के लिए आगे देखें) यथा विनासीक कह छोडि अथिर कह जानि विरच्चे। कवन सेज दलमली कवन व्रत धारक सच्चे।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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