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________________ प्रस्तावना ४७ अंग-धारी ५ आचार्य हुए १. नक्षत्र २. जयपाल ३. पाण्डु, ४. ध्रुवसेन और ५. कंस। इन सभी का कुल समय २२० वर्ष प्रमाण हैं। ____ तत्पश्चात् एक अंग के धारी चार मुनिराज हुए- १. सुभद्र, २. यशोभद्र, ३. यशोबाहु (भद्रबाहु) एवं ४. लोहाचार्य। इनका कुल समय ११८ वर्ष प्रमाण है। इस प्रकार महावीर-निर्वाण के पश्चात् कुल ६८३ वर्षों तक केवली, श्रुतकेवली एवं आचार्यों की परम्परा चलती रही। आचार्यों की उक्त काल-गणना के बाद कवि देवीदास ने बतलाया है कि दिगम्बर-परम्परा के प्रतिकूल आचरण करने वाले भी अनेक साधु हुए और आगे भी होंगे। ऐसे ७ करोड़ साधु जिनेन्द्रदेव के कथनानुसार नर्कगामी होंगे। पंचम-काल की यही स्थिति है। छठवाँ काल तो और भी अधिक व्याकुलता एवं विभिन्न दुखों को प्रकट करने वाला सिद्ध होगा। उक्त रचना के अनुसार पाँचवें एवं छठवें काल का कुल समय ४२ हजार वर्ष प्रमाण है। (३/२) मारीच-भवान्तराउलि कवि ने मारीच भवान्तरावलि की रचना २६ कुण्डलिया-पद्यों में की है। इस रचना में ऋषभदेव के पोते मारीच के जन्म से लेकर तीर्थंकर वर्द्धमान के रूप में जन्म लेने तक जितने भी भव धारण किए थे, उन सभी का वर्णन किया है। ___ मारीच अपने मिथ्याज्ञान, अहं एवं कर्मों के कारण जिस तरह उच्चकुल में जन्म लेकर भी निगोदिया, नारकी, स्थावर आदि जीवों के रूप में भटकता रहा, उसका रोचक वर्णन प्रस्तुत रचना में किया गया है। वीतराग-भावना, करुणा एवं शान्त रस के साथ-साथ इसमें काव्यत्व का निरूपण जिस रूप में हुआ हैं. वह प्रशंसनीय है। सिद्धान्त और दर्शन के साथ-साथ इसमें रस,, भाव प्रकृति आदि का जो वर्णन हुआ है, उसने विषय को सरसता प्रदान की है। ___अपने कर्मों के फल-स्वरूप मारीच का जीव ६० हजार वर्षों तक निगोदिया जीव की स्थिति में रहा। फिर उसने वनस्पति के रूप में अर्थात् नीबू, केवड़ा, धतूरा. चन्दन आदि की पर्यायों को धारण किया। तत्पश्चात् पशु-पर्याय को धारण किया। अन्त में उसने सिंह के रूप में जन्म लिया। उसी पर्याय में उसने एक मुनिराज का उपदेश ग्रहण किया, जिससे उसके परिणाम में निर्मलता आ गई। उसने तत्काल ही श्रावक-व्रत धारण किए। वह लगातार एक माह तक संयम का पालन करता रहा और अन्त में निर्मल-भावों के कारण उसने देव-पद प्राप्त किया। वहाँ से आयु पूर्ण कर वह वर्द्धमान के रूप में जन्मा और तत्पश्चात् निर्वाण-पद को प्राप्त किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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