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________________ २८ देवीदास - विलास १. परमानन्द - विलास, २. प्रवचनसार, ३. चिद्विलास - वचनिका, और ४. , चौबीसी - पाठ। इन रचनाओं में देवीदास - विलास का नामोल्लेख नहीं है। डॉ. कामता प्रसाद' और पं. परमानन्द शास्त्री ने भी देवीदास की उक्त रचनाओं के ही उल्लेख किए हैं, उनमें भी देवीदास - विलास का उल्लेख नहीं | प्रतीत होता है कि उनका मूलाधार भी सम्भवतः आदरणीय प्रेमी जी की ही खोज रहा है। (क) “देवीदास - विलास'.. नामकरण की समस्या तथा वर्गीकृत रचनाओं का परिचय जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कवि की रचनाओं के उल्लेख में पूर्वोक्त किसी भी विद्वान् ने "देवीदास - विलास” का उल्लेख नहीं किया। उन्होंने केवल "परमानन्द - विलास” का उल्लेख किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि सभी विद्वानों ने उनकी पहली रचना “परमानन्द - स्तोत्र" को देखकर ही उक्त सम्पूर्ण ग्रन्थ का नाम परमानन्द - विलास कर दिया है, जैसा प्राचीन गुटकों में प्रायः देखा जाता है कि रचनाकार या प्रतिलिपिकार पहली रचना के आधार पर ही पूरी रचना का नामकरण कर देता है। यह भी सम्भव है कि उक्त ग्रन्थ के प्रतिलिपिकार ने ही प्रति के मुखपृष्ठ पर "परमानन्द - विलास” लिख दिया हो और विद्वानों ने उसी को ग्रन्थ का पूरा नाम मानकर उसका उल्लेख कर दिया हो ? अभी कुछ समय पूर्व पं. गम्भीरमल जैन (अलीगंज) ने कवि के “परमानन्दविलास” की चर्चा ज़ैन- सन्देश में की थी। इसकी मूल प्रति यद्यपि मुझे देखने को नहीं मिली है किन्तु उन्होंने उसका जैसा परिचय दिया है, उसे देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह (परमानन्द - विलास ) सम्भवतः देवीदास - विलास का ही अपर नाम हो ? वस्तुतः देवीदास - विलास के अध्ययन क्रम में मुझे कहीं भी ग्रन्थ के नामकरण रूप में “परमानन्द - विलास” पद दृष्टिगोचर नहीं हुआ और देवीदास - विलास की जो प्रति मुझे प्राप्त हुई है उसको देवीदास ने स्वयं ही लिपिबद्ध किया है, जैसा कि उन्होंने अपनी उपदेश - पच्चीसी" के अन्त में लिखा है कि “इसे मैने ललितपुर १. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ. २१८ २. अनेकान्त, पत्रिका (११/७-८/२७४) ३. हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ. ८१ एवं हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ. २१८: ४. जैन- सन्देश, मथुरा १४ दिसम्बर १९८९ एवं ५ अप्रैल १९९० . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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