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________________ प्रस्तावना २५ जाता था। कवि देवीदास में ये सभी सद्गुण थे। इसी कारण उन्हें भी वहाँ के लोग "भायजी” कहकर पुकारा करते थे । कपड़ा बेचने के लिए आसपास के जिन ग्रामों में वे फेरी लगाया करते थे, उनमें से बछौड़ा नाम का एक ग्राम भी था। कहा जाता है कि वे वहाँ के एक साधर्मीपरिवार के यहाँ रुकते थे। उस परिवार में पाँच वर्ष का एक बालक था, जिसे भायजी बहुत स्नेह करते थे। यह बालक भी उन्हें देखकर बहुत प्रसन्न होता था । एक बार भायजी उसी परिवार में जाकर रुके। वह बच्चा उनके पास आकर खेलता रहा। उस समय की प्रथा के अनुसार उसके हाथों में चाँदी के कड़े पहना रखे थे। अगले दिन बालक की माँ ने नहलाने के समय जब बच्चे का कुर्त्ता उतारा तो ढीले होने के कारण एक हाथ का कड़ा कुर्ते में ही फँस कर रह गया। बच्चे के हाथ में कड़ा न देखकर माँ को आशंका हुई और वह सोचने लगी कि कहीं वह कड़ा भायजी ने न उतार लिया हो ? वह तुरन्त उनके पास पहुँची और उनसे उस कड़े के विषय में पूछने लगी । भायजी ने उसकी आन्तरिक दुर्भावना को समझ लिया और अपनी अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि शायद कपड़े के किसी गट्ठर के नीचे चला गया होगा, खोजने पर बाद में मिल जायगा । यह कहकर भायजी दुखी होकर तुरन्त ही बाजार गए और ५ तोला चाँदी का कड़ा बनवाकर ले आए और अगले दिन ही जाकर उसे वह कड़ा देकर बतलाया कि यह कपड़े के गट्ठर के नीचे मिल गया है। कड़ा पाकर माँ बड़ी प्रसन्न हुई । दूसरे दिन जब माँ बालक को वही कुरता पहनाने लगी, तो उसमें बच्चे का वह कड़ा निकलकर जमीन पर गिर पड़ा। उसे देखकर वह सन्न रह गई और आत्मग्लानि से भरकर सोचने लगी कि मैने व्यर्थ ही भायजी पर चोरी का सन्देह किया। उसने तुरन्त ही कड़ा लौटाते हुए भायजी से करबद्ध होकर क्षमा माँगी। किन्तु भायजी ने शान्त मन से कड़ा उसी को लौटाते हुए कहा कि "वस्तु के खो जाने पर व्यक्ति के मन में सन्देह तो उत्पन्न हो ही जाता है। यह तो मानव का स्वभाव ही है । किन्तु. इसमें आपका कोई दोष नहीं । " (३) शान्तभाव द्वारा हृदयपरिवर्तन एक बार देवीदास गाँव के कुछ व्यापारियों के साथ कपड़ा बेच कर लौट रहे थे। रास्ते में एक घना जंगल पड़ता था। जब सन्ध्या होने लगी, तो उन्होंने कहा कि सब लोग यहीं पर रुककर सामायिक ( सन्ध्या- समय का आत्म-चिन्तन) कर लें, तब आगे बढ़ेंगे। सभी लोगों ने उनका विरोध करते हुए कहा कि चूँकि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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