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________________ १२ देवीदास-विलास लगभग वही है, जो सामन्तसिंह के राज्याभिषेक का है, इसलिए दोनों के समय का मेल भी बैठ जाता है। उक्त सामन्तसिंह ओरछा स्टेट का शासक था। इसके शासन-काल में ओरछा की स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ थी। अपनी कुशल सझ-बझ से उसने अपने जीवन में सुख और शान्ति का वातावरण उपस्थित कर दिया था। उसने अपनी वीरोचित कर्त्तव्य-परायणता के कारण अनेक सम्मान और उपाधियाँ प्राप्त की थीं। उस समय भारत में अलीगौहर (शाह आलम) नामके मुस्लिम बादशाह का शासन था। वह सामन्त सिंह की कार्य-कुशलतां एवं कर्त्तव्य-निष्ठा से बहुत प्रसन्न था। एक बार जब वह वि. सं. १८१५ में रीवाँ से होता हुआ दिल्ली वापिस लौट रहा था, उस समय राजा सामन्तसिंह ने उसका विशेष रूप से आदर-सम्मान किया था। इससे बादशाह ने प्रसन्न होकर उसको “महेन्द्र'' की उपाधि से विभूषित किया था। राजा सामन्तसिंह ने वि. सं. १८२२ तक ओरछा की राजगद्दी को सुशोभित किया। इसके पश्चात् उसका देहावसान हो गया। कवि देवीदास ने अपनी एक ग्रन्थ-प्रशस्ति में राजा सामन्तसिंह के शासन की प्रशंसा करते हुए बतलाया है, कि “इस देश में प्रजा अत्यन्त सुखी और समृद्ध है। सभी को अपने-अपने धार्मिक कार्यों को करने का पूर्ण अधिकार है। अपने आराध्यदेव की पूजा एवं स्तवन की सभी के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता है। यही कारण है कि मैंने भी निर्भय होकर अपने तीर्थंकर प्रभु के स्तवन में “चतुर्विशतिजिनपूजा' की रचना की है. तात्पर्य यह कि राजा सामन्तसिंह के समय में राज्य चतुर्दिक समुन्नति पर था। समृद्धि, सुरक्षा, प्रगति एवं शान्ति की दृष्टि से वह एक ऐतिहासिक काल-माना जा सकता है। उस समय साहित्यकारों के लिए भी अपनी साहित्य-साधना में कोई विघ्नबाधा नहीं आती थी। सभी धर्म एवं सम्प्रदाय के लोगों में भी सौहार्द्र एवं स्नेह व्याप्त था। कवि ने सूत्र-शैली में इन्हीं परिस्थितियों की ओर संकेत किया है। ४. बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी : कवि देवीदास कवि देवीदास के उपलब्ध साहित्य के अध्ययन से उनके व्यक्तित्व के अनेक रूप सम्मुख आते हैं। कहीं तो वे एक निष्काम-भक्त के रूप में दिखलाई पड़ते हैं, १. दे बुन्देलखण्ड का संक्षिप्त इतिहास, पृ. १५७ . २. दे. चतुर्विशतिजिनपूजा-ग्रन्थकार प्रशस्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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