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________________ चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड ३२१ चरू नरम पुनि गुन सरस कारण मिले शक्कर स्वादु जू। ल्यायौ सु पूजन हेतु पार्श्वनाथ उत्तम देवजजू।। जुग. ।।६।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। तसु ज्योति जगमग, होत दीपक, दमक वर स्वयमेव जू। ल्यायौ सु पूजन हेतु पार्श्वनाथ उत्तम देवजू।जुग.।।७।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। वर धूप परम अनूप अग्नि मझार कर धर खेवजू। ल्यायौ सु पूजन हेतु पार्श्वनाथ उत्तम देवजू ।जुग. ।।८।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। फल सार सख दातार जामहि सरस गुण स्वयमेवजू। ल्यायौ सु पूजन हेतु पार्श्वनाथ उत्तम देवजू।जुग.।।९।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथचरणाग्रे मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा। जल आदि सर्व प्रकार दर्व सु अरघ कर स्वयमेव जू। ल्यायौ सु पूजन हेतु, पार्श्वनाथ उत्तम देवजू।जुग. ।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथचरणाग्रे अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं निर्वपामीति स्वाहा। गीतिका . हम निरख जिनबिम्ब पजत त्रिविध कर गुण थापना। तिनके न कारज काज निज, कल्यान हेतु सु आपना। जैसे किसान करे जु खेती, नाँहि नरपति कारने। अपने सु निज परिवार पालन, को जु कारज सारने।।११।। ॐ ह्रीं श्रीपर्श्वनाथचरणाग्रे पूर्णाय॑निर्वपामीति स्वाहा। ___ (जाप्य १०८ वार - ॐ ह्रीं पार्श्वनाथाय नमः) जयमाल दोहा पार्श्वनाथ सु कमठ मद, मद मर्दन विकराल। मति माफिक तिनकी कहौं, भाषा कर जयमाल।।१२।। पदाडि बनारस नाम पुरी सु अनूप, जय अश्वसेन नामा सुभूप। वामादेवी तिनके सु रानि, दुःखहरन परम सुख की सुखानि।।१३।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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