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________________ २७४ देवीदास-विलास प्राणी तन्दुल धवल सुवास के मुक्ताफल की उनहार हो। प्राणी ले जिन मन्दिर आइये फल अक्षय सुखसार हो। प्राणी. ।।४।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनचरणाग्रे अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी परम सुगन्धी फूल जे अति उज्ज्वल सरस अनूप हो प्राणी ले जिन मन्दिर आइये, परिये न विषय दुख कूप हो। प्राणी.।।५।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनचरणाग्रे कामबाणविध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी वर मिश्री अरु खोपड़ा, बहु भाँतिन के पकवान हो, प्राणी ले जिन मन्दिर आइये, जग में अति उत्तम दान हो। प्राणी. ।।६।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनचरणाग्रे क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी दीपक ज्योति सुहावनी, उदित जिम रतन अमोल हो, प्राणी ले जिनमन्दिर आइये, तन मन कर परम अडोल हो। प्राणी.।।७।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी धूप दशांग बनाइये पावक मँहि खेवन हेत हो। प्राणी ले जिन मन्दिर आइये उत्तम भाव समेत हो। प्राणी.।।८।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनचरणाग्रे अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी फल फासू जगमें भले, लोंगादिक अति उत्कृष्ट हो, प्राणी ले जिनमन्दिर आइये प्रगटै उर सभ्यग्दृष्टि हो। प्राणी ।।९।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनचरणाग्रे मोक्षफलप्राप्ताय फलम् निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी वांछा रहित संजोय कैं, जल चन्दन आदि सु दर्व हो, प्राणी ले जन मन्दिर आइये भव श्रद्वावन्त सुसर्व हो। प्राणी. ।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनचरणाग्रे अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं निर्वपामीति स्वाहा। गीतिका हम निरख जिनप्रतिबिम्ब पूजत त्रिविध कर गुण थापना। तिनके न कारज काज निज कल्याण हेत सु आपना। जैसे किसान करै जु खेती नाँहि नरपति कारने। आपनौ सु जिन परिवार पालन को सु कारज सारने।।११।। ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनचरणाग्रे पूर्णाऱ्या निर्वपामीति स्वाहा। (जाप्य १०८ बार - श्रीपुष्पदन्तजिनाय नमः) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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