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________________ २७२ देवीदास-विलास गीतिका हम निरख जिन प्रतिबिम्ब पूजत त्रिविध कर गुण थापना। तिनके न कारज काज निज कल्याण हेत सु आपना।। जैसे किसान करै जु खेती नाँहि नरपति कारने। आपनौ सु निज परिवार पालन को सु कारज सारने।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभुजिनचरणाग्रे पूर्णायं निर्वपामीति स्वाहा। जयमाल दोहा यह जग में भारी सरन, चन्द्रप्रभु सुरसाल। मति माफिक तिनकी कहौं, भाषा करि जयमाल।।११।। चौपाई चन्द्रपुरी सहित जिन आज्ञा, नृप महिसेन सहित सुप्रतिज्ञा। शुभ सुलक्ष्मी नाम की रानी, कीरतवन्त सबै जग जानी।।१२।। बैजयन्त तजिके सुविमाना, गर्भ विर्षे सु बसे सुख ठाना। चैतवदी निरमल शुभ पाँचे घर-घर दान देत विनु याचें।।१३।। पौषवदी ग्यारस सुखछाही, जनम नखत अनुराधा मांही। आयुष पूर्व लाख दश पाई, कुँवरावर पूरव सु अढ़ाई।।१४।। राज कर्यो परमानन्दकारी, लक्ष पूर्व साढ़े-षट भारी। पूष सुदी ग्यारस दिन लीनौ, तिन्ह तप लाख पूर्व इक कीनौ।।१५।। नागर बृक्ष तरै लिन शिक्षा, भूप सहस्त्र सहित इन दिक्षा। नलिनीपुर नर शुभ रागी, सोमदत्त राजा बड़भागी।।१६।। तिन्हि सन्मान कर्यो प्रभुजी कौ, दीनौ पय उत्कृष्ट गऊ को। मास तीन छदमस्त वितीते, जहअरि कर्म घातिया जीते।।१७।। फागुनवदि सातें सुख केरा, केवल दिन अपराहिन वेरा। समवशरण जोजन वसु साढ़े, गणधरदत्त आदि व्रत बाढ़े।।१८।। वैदर्भ आदि तिरानवै बताई प्रतिगणधर तँह लाख अठाई। वरुणादि त्रि-लाख गन राशी, असी-सहस अजया तँह भाषी।।१९।। श्रावक तीन लाख जहाँ लहिये, पांच-लाख श्रावगनी कहिये। सहस उभय मुनि अवधि प्रकाशी, आठ-सहस मनपर्यय राशी।।२०।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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