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________________ १८८ देवीदास - विलास दोहरा बुद्धि बाउनी की कहौं सुनौं विवस्था संत । कवि अपनी मतिमंदता वरनै करि दिष्टं । । सवैया इकतीसा जैसे काहू जौंहरी नै हारि के विचार बिना मौती एक - एक दो अथोक जोरि धरे हैं। समैं पाइ एक-एक मौती कौ समूह देखि पंगति लगाइ एक सूत माझ बरे हैं ।। जैसें ये कवित्त मित्र कहे ते अपंगति सौं बुद्धि सौं लगाइ फेरि पंगति मैं धरे हैं । जातैं धरे नाम बुद्धिबाउनी अनूप याकौ बुद्धिवंत मूरिख प्रतच्छ जानि पर हैं ।। ५३ ।। दोहरा सभा बिना गुन जन बिना बिन जन गुना विभास । सदायवीदे मैं गजत जग मैं देवियदास । ' तेईसा सवतु साल अठारह सैं पुनि द्वादस और धरौ अधिकारे । चैतसुदी परिमा गुरुवार कवित्त जबै इकठे करि धारे । । गंगह रूप गुपाल कहे कमलापति सीख सिखापन वारे । कैलगमा पुनि ग्राम दुगोडह के सबही वसवासनहारे । । ५४ । । दोहा दुरित मूल मिथ्यात मग दुरमति होत निकंद | बुद्धि बाउनी के सुनत उपजत परमानंद ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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