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________________ प्रस्तावना - ८५ १०. कवि देवीदास की रचनाओं का जैन एवं जैनेजर भक्त कवियों के साथ तुलनात्मक अध्ययन कवि देवीदास ने जिस- भक्ति-साहित्य की रचना की है, वह जिनेन्द्र-भक्ति से ओत-प्रोत है। जैन-दर्शन में भक्ति का रूप सख्य, दास और माधुर्य-भाव की भक्ति से भिन्न होता है। जिनेन्द्र तो वीतरागी हैं, वे राग-द्वेष से मुक्त हैं, अतएव न तो वे स्तुति से प्रसन्न होते हैं और न निन्दा से अप्रसन्न ही। वे तो समताभावी हैं, किन्तु उनकी भक्ति में एक विचित्रता यही हैं कि उनकी निन्दा या भक्ति करने. वाला स्वतः ही दण्ड या उत्कर्ष का भागी बन जाता है। __जैनधर्म में आत्मा के तीन भेद बतलाये गए हैं- १. बहिरात्मा, २. अन्तरात्मा और ३. शुद्धात्मा। शुद्धात्मा को परमात्मा भी माना गया है। प्रत्येक जीवात्मा कर्मबन्धन से छुटकारा प्राप्त कर लेने पर परमात्मा बन जाता है। जैनधर्म के अनुसार अनन्त आत्माओं की भाँति अनन्त परमात्मा भी हो सकते हैं। शुद्ध, बुद्ध, पूर्णज्ञानज्योति को प्रदीप्त करके मुक्तावस्था को प्राप्त कर लेने वाली सिद्ध-परमेष्ठी की आराधना भक्त-साधक इस लक्ष्य से करता है कि उसकी आत्मा भी निर्मल और स्वच्छ होकर पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर, उस परमपद को पा सके। देवीदास-विलास में कवि ने आध्यात्मिक पद्यों एवं पदों की जिस अजस्रपयस्विनी को प्रवाहित किया है, उसमें भावमय संगीतात्मक आत्माभिव्यक्ति के साथसाथ दार्शनिक विचारों की अभिव्यंजना भी अन्तर्निहित है। उसमें हृदय-तत्व की कोमल भावनामय अनुभूति के साथ ही दार्शनिक अगाधता भी विद्यमान है। इसलिए इनकी रचनाएँ भक्तिपरक एवं तथ्य-निरूपक होने के कारण महत्वपूर्ण सिद्ध होती हैं। इनमें उन्होंने आत्मा-परमात्मा, सतगुरु, मन, माया, आनन्द-अनुभव, समरसता, सहजता, पाखण्ड-विरोध आदि तथ्यों का उद्घाटन एक सहृदय कवि के रूप में किया है। इनके जीवन सम्बन्धी विश्लेषण संसार की वास्तविकता के आवरण में आवेष्टित हैं। कवि देवीदास की जीवन और जगत सम्बन्धी विचारधाराओं पर जैनाचार्य कुन्दकुन्द (ई. पू. प्रथमसदी), जोइन्दु (छठवींसदी), मुनि रामसिंह, (१०वीं सदी), बनारसीदास (१७वीं सदी), आनन्दघन (१८ वीं सदी), भूधरदास (१८वीं सदी), एवं भैया भगवतीदास (१८वीं सदी) का पूरा प्रभाव है। साथ ही हिन्दी के भक्तिकालीन कवियों के साथ कहीं-कहीं उनकी विचारधारा एवं भावना का ही नहीं, अपितु शब्दों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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