SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३ ) महाविद्यालय काशी, श्रीमान् जैन जातिभूषण सिंघई कुन्दनलालजी सागर व उक्त विद्यालय के प्रधान स्नातक श्री हीरालालजी पाण्डेय, बालचन्द्रजी विशारद, ज्ञानचन्द्रजी आलोक और दरबारीलालजी साहित्यरत्न हैं। ____ संस्था से सम्बन्ध रखनेवालों में प्रमुखता से श्रीमान् पं० जगन्मोहनलालजी शास्त्री कटनी, पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य प्रोफेसर हिन्दू विश्वविद्यालय काशी, पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य सागर, पं. नाथूलालजी शास्त्री संहितासूरि इन्दौर व पं० वन्शीधरजी व्याकरणाचार्य बीना का नाम लिया जा सकता है। इस काम में इन महानुभावों की हमें हर तरह से सहायता मिली है, अतः इन सबके हम हृदय से आभारी हैं। ___ जैसा कि मैं पहले प्रकट कर चुका हूँ कि वर्णी ग्रन्थमाला का उद्देश्य असाम्प्रदायिक है। वह बिना किसी भेदभाव के समान रूप से तत्त्वज्ञान का दिव्य सन्देश घर घर पहुँचाना चाहती है। वह उन समस्त प्रयत्नों का आदर करती है जो आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों प्रकार के व्यक्ति स्वातन्त्र्य की प्रतिष्ठा द्वारा व्यक्ति को राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक गुलामी से मुक्ति प्रदान करते हैं । वर्णीवाणी का सङ्कलन उन प्रयत्नों में से एक है। यह प्रयत्न इस दिशा में पूर्ण सफलता हासिल करे, ऐसी मेरी कामना है। श्रुतपश्चमी वी० सं० २४७५ । फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री भदैनीघाट, बनारस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy