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________________ वर्णी-वाणी १३४ पोली-पीली दिखती है जिससे उसे वर्ण का वास्तविक बोध नहीं हो पाता। ____ एक आदमी परदेश गया वहाँ उसे कामला रोग हो गया । घर पर स्त्री थी उसका रंग कालाथा जब वह परदेश से लौटा और घर आया तो उसे स्त्री पीली-पीली दिखी, उसने उसे भगा दिया कि मेरी स्त्री तो काली थी तूं यहाँ कहाँ से आई। वह कामला रोग होने से अपनी ही स्त्री को पराई समझने लगा। __ इसी प्रकार मोह के उदय में यह जीव १-कभी भ्रम में अपने लक्ष्य से विपरोत ही चलता है, २-कभी शक्ति से असमर्थ होकर कुछ काल के लिये अकिंचित्कर हो जाता है, ३-कभी विपरीत ज्ञान होने पर उलटा समझता है तो कभी ४-अपनी वस्तु को पराई समझने लगता है और कभी कभी पर को अपनी। यही संसार का कारण है । प्रयत्न ऐसा करो कि जिससे पाप का बाप यह मोह आत्मा से निकल जाय। हिंसादिक पाँच पाप अवश्य हैं पर वे मोह के समान अहितकर नहीं हैं। पाप का बाप यही मोह कम है यही दुनिया को नाच नचाता है। ___ मोह दूर हो जाय और आत्मा के परिणाम निर्मल हो जाय तो ससार से आज छुट्टी मिल जाय। ज्ञान के भीतर जो अनेक विकल्प उठते हैं उसका कारण मोह ही है। किसी व्यक्ति को आपने देखा यदि आपके हृदय में उसके प्रति मोह नहीं है तो कुछ भी विकल्प' उठने का नहीं आपको उसका ज्ञान भर हो जायगा पर जिसके हृदय में उसके प्रति मोह है उसके हृदय में अनेक विकल्प उठते हैं यह विद्वान है यह अमुक कार्य करता है इसने अभी भोजन किया या नहीं आदि । बिना मोह के कौन पूछने चला कि इसने अभी खाया है या नहीं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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