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________________ लेखांक २७२- कृष्णगढ़ (किशनगढ़) राठौड़ रूपसिंह जी के राज्य में मुहणोत गोत्रीय रायचद ने चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मन्दिर बनवाकर बड़े महोत्सव के साथ प्रतिष्ठा करवाई। प्रतिष्ठाकारक आचार्य तपागच्छीय श्री विजयदेवसूरि के पट्टधर विजयसिंहसूरि थे। इस समय की प्रतिष्ठित कई मर्तियों के लेख प्राप्त हैं। लेखांक २९८- सम्वत् १७१३ में औरंगाबाद नगर में महातीर्थ समवसरण पट्ट की प्रतिष्ठा विजयप्रभसूरि ने की थी। इस तीर्थ पट्ट के मध्य में समवसरण, आदीश्वर मूर्ति, सिद्धशिला, शत्रुजय, सम्मेतशिखर, गौडी-अंतरिक्ष-फलवर्द्धि-शंखेश्वर पार्श्वनाथ, नवपद, नवग्रह, ओंकार, हृींकार, २४ जिन और गिरनार तीर्थ की रचना अंकित है। लेखांक ३२८- देवगढ़ पार्श्वनाथ मन्दिर का यह शिलालेख सम्वत् १७७४ में मालव देश में काठलमण्डल में राणा हमीर वंश के विभूषण महाराजाधिराज महारावल पृथ्वीसिंह जी के विजय राज्य में, देवगढ़ नगर में, हुम्बड जातीय लघुशाखा के मात्रेश्वर गोत्रीय सा० श्री राम के वंशजों की विशाल परम्परा का उल्लेख करते हुए उनके धार्मिक कृत्यों का वर्णन किया है। इनके पूर्वजों-सा० कडुआ ने सागवाड़ा नगर में पार्श्वनाथ चैत्यालय में भद्रप्रासाद निर्माण करवाया था और मघा ने इसी नगर में पौषधशाला का निर्माण करवाया था। साह चहिया अमात्य पद धारक थे। इन्हीं ने विघ्नहर पार्श्वनाथ मन्दिर बनवाया और इस मन्दिर की प्रतिष्ठा तपागच्छीय महोपाध्याय सहजसुन्दर से करवाई। पंन्यास क्रांतिसुन्दर ने लेख लिखा और सूत्रधार देवा के पुत्र कानु ने उत्कीर्ण किया। लेखांक ३७३- सम्वत् १८४० में ओसवंशीय साण्डेचा गोत्रीय रायमल के पौत्र सं० जीवराज जो आमेर देशाधिपति के द्वारा प्रदत्त दीवान पद के धारक थे, ने अपने पुत्र मोहनराम, रामगोपाल और कमलापति के साथ खोहनगर में देवस्थल की स्थापना के लिए पार्श्वनाथ की मूर्ति का निर्माण करवाया। राजपुर के राजा हम्मीरसिंह के राज्य में विजयगच्छीय श्रीपूज्य महेन्द्रसागरसूरि (viii) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003984
Book TitlePratishtha Lekh Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherVinaysagar
Publication Year2003
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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