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प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः
माणिक पहुसूरि नामू श्रीयसूरिप्रतीछीउ कछूलीपुरि पासजिणभूयणि अहिठीउ ॥ सावयलोय करई तसु भत्ती नवनवधम्ममहूसवजुत्ती । श्रीसूरि आरासणिअठाही अणसणविहि पहतउ सुरनाही । निवीय आंबिल सोसीय नियकाया माणिक पहसूरि वंदउ पाया । विणठदेह जस धवलह राणी पायपखालणि हुई य पहाणी । माणिकसूरि जे कीध जिणघम्मपभावण इकमुहि ते किम वन्नउ भवपावपणासण ॥
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कालु आसन्नु जाणेवि माणिकसूरि नयरिकछुलि जाएवि गुणमणिगिरि । सेठ बासलसुउ वादिगयकेसरी विरससंसारसरिनाहतारणतरी । संघु मेलवि सिरिपासजिणमंदिरे वेगि नियपाटि गुरु विउ अइसइ परे । उदयसिंहसूर की नामि नाचती ए नारिंगण गच्छभरु सयलु समपीजए । सुरु जिम भवियकमलाई विहसंतओ नयरि चड्डावली ताव संपत्तओ ॥
वन चत्तारि वरवाणि जो रंजए राउलो धंधलोदेउ मणि चमकए । कोइ कम्माली पाऊयारूढओ गयणि खापरिथीइं भणइ हउं वादीओ । पंडिते बंभणे तापसे हारियं राउलोधंधलोदेविहिं चिंतियं ।
वादिहिं जीतउं नयरो नवि कोउ हरावइ उदयसूरि जइ होए अम्ह माणु रहावइ ॥ वस्त - जित्त नयरि य जित्त नयरि य सयलमुणिसीह । नीरंत नीरु षडो गरूयदंडडंबर करंतई ।
धंधलु राउलु विन्नवइ सामिसाल पर मझि संतई । बंभण तपसीय पंडीया जं त न बंधई बाल । सु गुरु कम्मालिउ निज्जणीउ अम्ह अप्पर वरमाल ॥ धंधलजिणहरि सवि मिलिय राणालोय असेस ।
उदयसूरि संघिहि सहीउ निवसह ए निवसइ ए निवसइ वरहरि पीठि ॥ सत्थिपमाणी हरावी मंत्रिहिं ए मंत्रिहिं ए मंत्रिहिं वादुकमठो ॥ सेयंवर त हिव रहिजे जे गुरु सिद्धिहिं चंडो ।
विसहरु आवतु परिषलि जे लंषीउ ए लंषीउ ए लंषीउं दंडु पयंडो ॥ तउ गरि मुहंतां मिल्हिकरि होई गरड षणेण ।
धाईड लीधर चंचुपडे गिलीउ ए गिलीउ ए गिलीड छालभुयंगो || पाउपिलिवि संमुहीय डरडरंतु थीउ वाघो ।
जोवणहार सवि पलभलीय हीयडई ए हीयडई ए ही डइ पडीउ दाघो |
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