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________________ प्रकाशकीय सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल के द्वारा विगत ५२ वर्षों से 'जिनवाणी' मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया जा रहा है। अब तक जिनवाणी के बारह विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं। सर्वप्रथम १९६४ ई. में 'स्वाध्याय' विशेषांक का प्रकाशन हुआ। उसके अन्तर्गत 'सामायिक' (१९६५) 'तप' (१९६६) 'श्रावक धर्म' (१९७०) 'साधना' (१९७१) 'ध्यान' (१९७२) 'जैन संस्कृति और राजस्थान' (१९७५) 'कर्म सिद्धान्त' (१९८४) 'अपरिग्रह' (१९८६) 'आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. श्रद्धांजलि' (१९९१) 'आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. व्यक्तित्व एवं कृतित्व' (१९९२) और 'अहिंसा' (१९९३), विशेषांकों ने इस कार्य को आगे बढ़ाया। क्रियोद्धारक आचार्यप्रवर श्री रत्नचंद्रजी म.सा. रत्नवंशीय संत-परम्परा के प्रमुख आचार्य हुए हैं। यह वर्ष उनके क्रियोद्धार का २००वां वर्ष है। जिनवाणी का यह 'सम्यग्दर्शन' विशेषांक, उस निर्मलदृष्टि एवं तेजस्वी आत्मा को अर्पित करते हुए हमें महती प्रसन्नता है। उल्लेखनीय है कि सम्यग्ज्ञान प्रचार मण्डल की स्थापना का प्रसंग भी आचार्य श्री रत्नचंद्र जी म.सा. से जुड़ा हुआ है। सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल की स्थापना आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. की प्रेरणा से क्रियोद्धारक आचार्य प्रवर श्री रत्नचन्द्र जी म.सा. के स्वर्गवास शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में हुई थी। . वर्तमान आचार्य प्रवर १००८ श्री हीराचन्द्र जी म.सा. का 'सम्यग्दर्शन' पर विशेष चिन्तन रहा है। आप समय समय पर अपने उद्बोधनों के माध्यम से इसके महत्त्व पर प्रभावशाली ढंग से प्रकाश डालते रहे हैं तथा जीवन के शाश्वत लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करने में सम्यग्दर्शन को आवश्यक मानते हैं। आचार्य श्री के उद्बोधनों से प्रेरणा पाकर ऐसे मानवकल्याणकारी तथा चरम लक्ष्य तक पहंचाने वाले 'सम्यग्दर्शन' विषय पर जिनवाणी का 'सम्यग्दर्शन' विशेषांक अप्रेल, मई, जून ब अगस्त, १९९६ क संयुक्तांक के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है इस विशेषांक को सुन्दर, बोधगम्य एवं सर्वाङ्गपूर्ण बनाने में डा. धर्मचंदजी जैन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आपने अपने कुशल सम्पादन से सम्यग्दर्शन जैसे कठिन विषय को भी सहज एवं सरल रूप में इस विशेषांक के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । मण्डल परिवार आपके इस महनीय कार्य की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करता है। ___ हम उन सन्तों, विद्वानों एवं लेखकों का भी आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने अपने आलेख भिजवाकर विशेषांक की उपयोगिता बढ़ाई है। हम उन विज्ञापन-दाताओं का भी आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने अपने व अपने प्रतिष्ठानों का विज्ञापन देकर जिनशासन की सेवा करने का लाभ प्राप्त किया है। आशा है यह विशेषांक सभी के लिए उपयोगी सिद्ध होगा तथा जीवन को समुन्नत एवं परिष्कृत करने में सहयोगी बनेगा, ऐसी मंगल कामना है। डा. सम्पतसिंह भाण्डावात, टीकमचन्द हीरावत विमलचंद डागा अध्यक्ष कार्याध्यक्ष - मंत्री सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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