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________________ ३४८ जिनवाणी- विशेषाङ्क आने वाला था। तीज का चांद मैंने देखा, अतः मुझे कष्ट आने का बहम था, मन में आशंका हुई कि बेटा अनुत्तीर्ण होगा। मैंने अगले दिन जोधपुर पहुंच कर कहीं से अपने घर पर फोन कर रिजल्ट पूछा । स्वयं उसने ही बताया कि वह उत्तीर्ण नहीं हुआ । खैर भारी मन से मैंने घर के बाहर ही दो तीन घंटे बिताये । फिर घर पर पहुंचा तो वहां मिठाई बंट रही थी। मैंने अपने पुत्र से कहा कि फेल होने की खुशी में मिठाई बांट रहे हो क्या? तो उसने बताया कि पहले रिजल्ट में गलती से उसे फेल बताया गया, फिर बाद में जो सही रिजल्ट बताया उसमें वह उत्तीर्ण था। दूसरे दिन अखबारों में प्रकाशित परिणाम से उसके उत्तीर्ण होने की पुष्टि हो गई । प्रसन्नता हुई रिजल्ट की और चांद वाला अंधविश्वास भी टूट गया। इस प्रकार बचपन में घुसे हुए अनेक अंधविश्वास, जैसे किन दिनों में बाल नहीं कटवाना, दाढ़ी नहीं बनाना, यात्रा नहीं करना आदि से मेरा छुटकारा हो गया। मैं लम्बी यात्रा पर वर्जित दिन बुधवार को ही जाता, इससे गाड़ी में स्थान आसानी से मिल जाता । बाल शनिवार को कटाने जाता, इससे उस दिन वहां भीड़ नहीं मिलती । सगाई विवाह आदि पारिवारिक शुभ कार्यों में भी मैंने मुहूर्त नहीं निकलवाया। बड़े बड़े ज्योतिषियों के घरों में उनकी पुत्र-वधुओं में से विधवा बनी देखी। उनका कथन था यह कर्मानुसार है, तो फिर व्यर्थ में मुहूर्त आदि के चक्कर में पड़ने का कोई तुक मुझे नजर नहीं आया । मैंने सुना, किले बनाते समय उसकी नींव में जीवित मनुष्य को गाड़ा जाता था, अन्यथा देवी की प्रतिमा के सम्मुख उसकी बलि दी जाती थी । पुत्र-प्राप्ति एवं पुत्ररक्षा के लिए तथा विजयप्राप्ति के लिये नर बलि देने का अन्धविश्वास युगों तक चला, फिर कानून विरुद्ध हो जाने से यदा-कदा छिपे छिपाये नर बलि विशेषकर छोटे बालकों की बलि होती रही। पशुबलि को धर्म का लिबास भी पहना दिया गया । भगवान महावीर, बुद्ध, गांधी आदि महापुरुषों के सदुपदेश एवं प्रयत्नों से इसमें कमी तो आई, पर धर्मान्धता के कारण यह प्रथा निर्मूल नहीं हुई। दिनांक ११-६-९५ की 'जनसत्ता' दैनिक में नरबलि की घटना का समाचार था कि पटना से ६० किमी दूर सिकली गांव में काली के मंदिर में एक मनुष्य की गर्दन काटकर चढ़ाई गई । इसी वर्ष फरवरी में एक भोपा ने देवी को प्रसन्न करने हेतु भाव लाकर अपने बालक - पुत्र को बार-बार पत्थर पर पछाड़ कर मार दिया। गत अक्टूबर माह में जालोर से दस किमी दूर गांव में एक भोपा, देवी को प्रसन्न करने के लिए भतीजे को मारकर उसका मांस खा गया। दक्षिण में कुछ स्थानों पर समय पर वर्षा नहीं आने पर सम्पूर्ण रूप से नग्न स्त्रियों का जलसा किसी देवी के मंदिर जाता है तो कई स्थानों पर जीवित आदमी को लाश के रूप में श्मशान ले जाया जाता है । कभी कभी तो श्मशान पहुंचते-पहुंचते वह व्यक्ति वास्तव में मर जाता है । अपनी आशा या मुराद पूरी होने पर कर्नाटक के शिमोगा जिले में कुछ गांवों की स्त्रियां नग्न होकर पांच छह किमी. दूर सुरंभा देवी के मन्दिर में दिन को जाकर पूजा करती हैं। नग्न स्त्रियों के पुरुष उनके अंग वस्त्र लेकर उनके पीछे-पीछे चलते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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